ANGER MANAGEMENT
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Description

In today's world, problems of anger, rage, aggression and violent outbursts have reached a critical point where they threaten the ethos of the modern society, and hence, need to be effectively managed. Anger management is a term that we all can instantly relate to. Laying out a host of effective tips to manage anger, this book comes with the power to change things for the better.The key features of the book are:- Explanation of the confusing emotion of anger in simple terms, including the physiology of anger and its deleterious effects.- Detail anger management techniques for individuals, family, school and workplace.- Easy tips to master anger where chronic anger and unhappiness translates into negative human behaviors: abusive love relationships, dating violence, date rape, drug abuse, driving aggression, robbery, gambling, suicidal ideation, sensation seeking and other impulse control behaviors.- A to Z tips for self-management of anger.- How to reconstruct their negative thoughts, feelings and behaviors with emphasis on therapeutic intervention for serious anger problems.This book provides useful tips on mastering the art of anger management. Its lucid narration and the use of cartoons and illustrations make it an interesting, entertaining and effective read for professionals as well as lay persons, Physicians, psychiatrists, psychologists, and counsellors can also recommend this book to their patients.

Informations

Publié par
Date de parution 19 juin 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352963676
Langue English
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0118€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

एंगर मैनेजमेंट
(क्रोध-प्रबंधन)

 
eISBN: 978-93-5296-367-6
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
A NGER M ANAGEMENT
By - Swati Y. Bhave and Sunil Saini
मैं यह पुस्तक अपने पति यशवंत भावे को समर्पित करती हूँ... उनके साथ पिछले पैंतीस वर्षों से रहते हुए मैंने सीखा कि प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी क्रोध को नियंत्रित करना संभव है। किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहना असीम शांति व प्रसन्नता प्रदान करता है, जिसे कभी क्रोध नहीं आता वर्षों के अभ्यास से, मैं भी काफी हद तक अपने क्रोध का प्रबंधन करने में सफल रही हूँ और यहीं से इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मिली।
स्वाति वाई. भावे
यह पुस्तक मेरे माता-पिता को समर्पित है
सुनील सैनी
प्रस्तावना
जब हम लक्ष्य तक पहुँचने में बाधा का अनुभव करते हैं तो क्रोध की भावात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। रोज़मर्रा का जीवन अनेक ऐसे उदाहरणों से भरा है, जब हम अपना मनचाहा न पाने पर कुंठित व क्रोधित हो जाते हैं। यह पुस्तक ‘क्रोध प्रबंधन’ आम आदमी के लिए लिखी गई है ताकि वह इन रोजमर्रा में सामने आने वाली विवादित परिस्थितियों को समझें, जो व्यक्ति को क्रोध व इससे संबंधित समस्याओं की ओर ले जाती हैं, साथ ही इनके उचित प्रबंधन का भी सविस्तार वर्णन है। मनोविज्ञानी, मनसविद् व अन्य स्वास्थ्य, विशेषज्ञ तनाव, अवसाद, आक्रामकता व अन्य आचरण संबंधी मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर वर्षों से काम कर रहे हैं परन्तु इन सबके बावजूद, एक आम आदमी के लिए क्रोध-प्रबंधन कार्य का अभाव था। प्रस्तुत पुस्तक इसी विषय को उठाती है कि रोज़मर्रा की जिंदगी में आम आदमी कैसे क्रोध का अनुभव व अभिव्यक्ति करता है और इसके द्वारा कैसे उसे सेहत से जुड़ी समस्याएं घेरती हैं।
संसार के विभिन्न हिस्सों में क्रोध व उससे जुड़ी समस्याओं पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं परन्तु कोई भी एक पुस्तक अपने-आप में संपूर्ण नहीं है। भारत में तो आम आदमी के लिए इस विषय पर कोई अच्छी पुस्तक है ही नहीं। प्रस्तुत पुस्तक में हमने भरपूर प्रयास किया है कि पाठक के लिए समस्त सहज व सरल भाषा में सामग्री दी जाए ताकि वे अपने नकारात्मक विचारों, भावनाओं तथा व्यवहारों को नए सिरे से गढ़ कर, दिन-प्रतिदिन के क्रोध की समस्या का प्रबंधन कर सके। तभी हम स्कूल, घर और कार्यक्षेत्र में एक बेहतर वातावरण की सृष्टि कर, व्यक्तिगत स्तर पर मानसिक शांति का वह स्तर बना पाएंगे, जो पूरे समाज व संसार की शांति की बेहतरी के लिए हो।
हम प्रायः देखते हैं कि रोज़मर्रा के संघर्षों से माता-पिता व बच्चे में आक्रामकता, वैवाहिक संघर्ष, स्कूल का बुरा प्रदर्शन, स्कूल में सताना, अध्यापक- छात्र हिंसा, काम से उत्पन्न कुंठा, अधूरे लक्ष्य व तनाव, अवसाद आक्रामकता, सड़क द्वेष आदि व्यक्तिगत समस्याओं की केवल एक ही जड़ है, वह है ‘क्रोध’। एक आदमी को विभिन्न स्रोतों से सामने आने वाले क्रोध का सामना करना पड़ता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर, हमने यह पुस्तक लिखने की योजना बनाई।
पुस्तक का पहला भाग निरीक्षण करता है कि रोज़मर्रा के जीवन में क्रोध कैसे विकसित होता है, हम कैसे इसका अनुभव करते हैं; इसे दबाते हैं, प्रकट करते हैं या नियंत्रित करते हैं। इस पुस्तक की सबसे खास विशेषता यह है कि सारी सामग्री को उदाहरणों व चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ताकि एक आम आदमी भी जान सके कि दिन-प्रतिदिन के जीवन में क्रोध कैसे पनपता है तथा इसका प्रबंधन कैसे किया जाए? इस भाग में क्रोध मापने के साधनों की महत्त्वपूर्ण जानकारी भी शामिल है।
पुस्तक के दूसरे भाग में; क्रोध के प्रभाव, यह कितने समय तक रहता है, यह क्यों होता है, क्रोध की शारीरिक प्रतिक्रिया, शारीरिक समस्याओं को बढ़ाने में क्रोधकैसे सहायक है (जैसे- हाइपरटेंशन, स्ट्रोक, फेफड़ों के रोग, मधुमेह, कैंसर, गठिया, मोटापा व पीड़ा), मनोवैज्ञानिक समस्याएं (जैसे- अवसाद, तनाव, खान-पान डिसऑर्डर, शारीरिक असंतुष्टि व आत्महत्या की प्रवृत्ति) तथा व्यवहार संबंधी समस्याएं (आक्रामकता, डेटिंग हिंसा, वैवाहिक मतभेद, सड़क द्वेष, मदिरापान व मादक द्रव्यों का सेवन, उत्तेजना की मार व आवेग) आदि की चर्चा की गई है। शोधकर्ताओं ने भी दर्शाया है कि क्रोध व इसके सहायक द्वेष व आक्रामकता को सामूहिक रूप से AHA, सिंड्रोम की संज्ञा दे सकते हैं, इसका कार्डियोवास्कुलर रोगों के बढ़ते खतरे से प्रत्यक्ष संबंध है। हमने इस विषय पर एक पुस्तक ‘AHA सिंड्रोम व कार्डियोवास्कुलर डिसीज़’ भी लिखी है।
पुस्तक का तीसरा भाग व्यक्ति, परिवार, समाज, स्कूल व कार्यक्षेत्र के लिए क्रोध प्रबंधन उपायों पर केंद्रित है। क्रोध प्रबंधन के A to Z उपायों को कार्टून की सहायता से भी दिखाया गया है। ये इतने सरल व सादा हैं कि इन्हें केवल एक बार प्रयोग करने पर भी क्रोध घटाने में मदद मिल सकती है। हमने चिकित्सकीय स्तर पर भी दीर्घकालीन क्रोध से निबटने के लिए महत्त्वपूर्ण व प्रभावी उपचार पद्धतियाँ प्रस्तुत की हैं।
परिशिष्ट में क्रोध से जुड़ी विभिन्न परिभाषाएं ली गई हैं, जिनमें प्लेटो, व अरस्तू से ले कर स्पिलबर्गर, नोवैको तथा डैफनबेकर जैसे वर्तमान शोधकर्ताओं के विचार भी शामिल हैं। इस परिशिष्ट की सहायता से आम आदमी क्रोध की अवधारणा को समझते हुए यह जान सकता है कि विभिन्न शोधकर्ताओं ने इसे कैसे परिभाषित किया है।
हम आशा करते हैं कि यह पुस्तक पढ़ने के बाद हर आम आदमी इसे अपने पुस्तक संग्रह या पुस्तकालय का स्थायी अंग बनाना चाहेगा।
आभार
हम राष्ट्रीय स्तर के कार्टूनिस्ट डा. मनोज छाबड़ा के महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने हमारी आवश्यकता के अनुसार बढ़िया कार्टून तैयार किए, जिससे पुस्तक पढ़ने में और भी रोचक हो गई।
स्वाति वाई. भावे
मैं डॉ. स्वाति भावे का हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने हमारे दूसरे संयुक्त प्रयास में पूरा विश्वास तथा प्रोत्साहन दिया व पुस्तक के कार्टूनों के अतिरिक्त सभी चित्र बनाने में योगदान दिया। मैं हिसार GJUST के सभी स्टाफ सदस्यों तथा UCIC इंचार्ज मि. मुकेश कुमार को विशेष रूप से सभी बातों के लिए धन्यवाद देता हूँ। अंत में नीलम गोयल को विशेष धन्यवाद, जिन्होंने साथ-साथ मेरी दूसरी परियोजनाओं में भी पूरा सहयोग दिया है।
सुनील सैनी
लेखकों के विषय में
स्वाति वाई. भावे, नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल की विजिटिंग सलाहकार हैं तथा अंतर्राष्ट्रीय रूप से ख्याति प्राप्त बाल एवं किशोर विशेषज्ञा होने के साथ-साथ वे एक एन. जी. ओ.- एसोसिएशन ऑफ एडोलसेंट एंड चाइल्ड केयर इन इंडिया (AACCI) की एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर भी हैं। स्वाति वाई. भावे सन् 2000 में इंडियन एकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक्स (प्।च्) की अध्यक्षा रह चुकी हैं तथा इन दिनों संस्था की संयोजिका के पद पर कार्यरत हैं। इनके अलावा वे जिनेवा, (WHO) के बाल तथा किशोर वर्ग में (TSC) कमेटी की सदस्या, पुणे के वी जे मेडिकल कॉलेज में पीडिएट्रिक्स की भूतपूर्व प्रोफेसर तथा मुंबई के ग्रांड मेडीकल कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने बॉम्बे हॉस्पिटल इंस्ट्ीयूट ऑफ मेडीकल साइंस में वरिष्ठ सलाहकार तथा पी जी अध्यापिका के रूप में भी कार्य किया है। उन्होंने किशोरों के स्वास्थ्य से जुड़ी अनेक मेडिकल पुस्तकें लिखी हैं तथा इन दिनों किशोर मानसिक स्वास्थ्य में रुचि ले रही हैं। उन्होंने आम आदमी के लिए भी कई पुस्तकें लिखी हैं तथा अनेक टी.वी. कार्यक्रमों तथा रेडियो वार्ताओं में भाग लिया है। स्वाति जी 1994-2008 तक ‘एशियन जनरल ऑफ पीडिएट्रिक्स प्रोक्टिस’ की संपादिका भी रहीं।
सुनील सैनी, (GJUST), हिसार, हरियाणा के डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड साइकॉलोजी में शोधरत हैं। उन्होंने क्रोध व क्रोध से जुड़ी समस्याओं पर काफी शोधकार्य किया है। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनके 40 से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं तथा उन्होंने डा. स्वाति भावे के साथ एक पुस्तक का संपादन भी किया है। सुनील सैनी इन दिनों ‘इंडियन साइकोलॉजिस्ट’ पत्रिका के एसोसिएट एक्ज़ीक्यूटिव एडीटर हैं।
प्रमुख सूत्र व शब्द एडिक्शन (लत)- किसी भी आदत को बार-बार दोहराने की इच्छा या किसी व्यवहार में प्रवृत्त होने की उत्कट इच्छा ही लत कहलाती है। एडोलसेंस (किशोरावस्था)- बाल्यकाल से व्यस्कावस्था की ओर जाने वाली अवधि (WHO ने इसे 10-19 वर्ष की आयु के रूप में परिभाषित किया है) एग्रीशन (आक्रामकता)- दूसरे व्यक्ति को जानबूझ कर शारीरिक, मानसिक या सामाजिक रूप से आहत करना आक्रामकता है। ए. एच. ए. सिंड्रोम- क्रोध, बैर तथा आक्रामकता का मेल एनोयेंस- (खीज)- यह एक अप्रसन्न मानसिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति की एक जैसी लगातार सोच से कुढ़न या खीज पैदा होती है फिर यह क्रोध में बदल जाती है। एनोरेक्सिया नर्वोसा- खान-पान की अस्वास्थ्यकर आदतों व शरीर के आकार तथा वजन के बारे में चिंता की अवस्था। एंग्ज़ायटी (उद्वेग)- चिंता, तनाव तथा परेशानी की अवस्था। बिहेवियर थेरेपी- लर्निंग सिद्धांतों के आधार पर साइकोथेरेपी पद्धति शरीर के प्रति असंतुष्टि- अपने शरीर व शारीरिक अंगों के प्रति नकारात्मक मूल्यांकन का भाव बुलीमिया नर्वोसा- इस अवस्था में रोगी आवश्यकता से अधिक खाने के बाद उल्टी करके कैलोरी की संख्या घटाने का प्रयास करता है। (चाइल्ड एब्यूज)- जान बूझकर बच्चे को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना। कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी- इस थेरेपी में व्यक्तियों को उन तनावपूर्ण स्थितियों को पहचानने में सहायता मिलता है, जिनसे शारीरिक या भावात्मक लक्षण पैदा होते हैं तथा हालात का सामना करने के तरीकों में मदद मिलती है। कॉग्निटिव रीस्ट्रक्चरिंग- इस थेरेपी में रोगियों को पीड़ादायक विचारों को पहचाननें, उनसे मुक्ति पाने या उनके स्थान पर वांछित विचारों को लाने की तकनीकें सिखाई जाती हैं। करुणा (कंपेशन)- किसी दूसरे व्यक्ति की या अपनी भावात्मक अवस्था की समझ। शारीरिक दण्ड- किसी व्यक्ति के व्यवहार को बदलने या उसे सजा देने के लिए शारीरिक पीड़ा व कष्ट देना। डिप्रेशन (अवसाद)- यह एक मूड डिसऑर्डर है, जिसमें हानि, उदासी, निराशा, असफलता या अस्वीकृति की भावना हावी होती है। मूड डिसऑर्डर के दो प्रमुख प्रकार हैं- यूनी पोलर डिसऑर्डर व बाई पोलर डिसऑर्डर निराशा- जब अपेक्षाएं पूरी नहीं होती, तो असंतुष्टि की भावना उपजती है, जिसे निराशा कहते हैं। डिस्प्लेसमेंट- भावनाओं के असली स्रोत की बजाय भावनाओं को कम खतरे वाली वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति की ओर निर्देशित करना। ईटिंग डिसऑर्डर- अधिक वजन व वजन नियंत्रण के अस्वस्थ भावों के कारण खान-पान में अनियंत्रित व्यवस्था। इम्पेथी (समानुभूति)- दूसरों के हालात समझने की योग्यता। इमोशन (भाव)- शारीरिक बदलावों के साथ शक्तिशाली अनियंत्रित भावनाएं इमोशनल इंटेलीजेंस (भावात्मक बुद्धिमता)- यह एक ऐसी योग्यता, सक्षमता या कौशल है, जिसके बल पर कोई अपने दूसरों के या समूह के भावों का बोध, मूल्यांकन या प्रबंधन कर सकता है। फीयर (भय) भय किसी व्यक्ति, वस्तु स्थान या घटना के प्रति गहन विद्वेष का भाव है, जो भावात्मक पीड़ा का कारण हो सकता है। फ्रस्ट्रेशन (कुंठा) यदि हमारा लक्ष्य कुंठित हो, तो ऐसी परिस्थिति में यह भावना जन्म लेती है। फ्रस्ट्रेशन टॉलरेंस (कुंठा सहनशीलता)- किसी व्यक्ति में परिस्थिति जन्मजात कुंठा को सहन करने की योग्यता। होस्टिलिटी (बैर/द्वेष)- इस प्रवृत्ति में दूसरों को नापसंद करना व उनका नकारात्मक मूल्यांकन शामिल है। ह्यूमर (हास्यप्रियता)- व्यक्ति, वस्तुओं या परिस्थितियों या शब्दों में दूसरों के मन में प्रसन्नता पैदा करने की भावना हास्यप्रियता कहलाती है। हास्य अनुभव करने की योग्यता ही हास्यप्रियता है। हिप्नोसिस (सम्मोहन)- सम्मोहन एक स्वप्नावस्था की भांति है, जिसमें व्यक्ति विद्वालीन की तरह सम्मोहित हो जाता है तथा सम्मोहनकर्ता के आदेशों का पालन करता है। इम्पल्सिविटी (लालसा)

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