YOGASANA AND SADHANA (Hindi)
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Hindi

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YOGASANA AND SADHANA (Hindi) , livre ebook

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Description

Explore the Influence of Yoga for Sure Cure! Yogasana is a sure cure for all physical and mental problems. Written by yoga specialist Dr. Satpal Grover, this book is a product of 40 years of constant practice and experience, of yoga. A step-by-step guide to strengthen your mind, elevate your thoughts and for living a happy life. This book shows the right way to healthy body, mind and soul.Based on the experiences of Yoga and Meditationcharyoan written a unique book. Actions purification, pranayama, meditation, Diet and Nutrition - and Yoga and Meditationsan Vihar.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 28 juin 2011
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350573860
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

योगासन एवं साधना
 
लेखक
डॉ. सत्यपाल
योग विशेषज्ञ एवं प्राकृतिक चिकित्सक
श्री ढोलनदास अग्रवाल
योगाचार्य
 
सम्पादन
डॉ. विश्वनाथ प्रसाद सिन्हा
 
 
 




प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-814484-8-9
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020

प्रस्तावना
योग एक दर्शन है। यह जीवन को समग्ररूप से देखने की दृष्टि देता है। इसमें शरीर की उपेक्षा नहीं है, बल्कि उस आधार को सशक्त बनाने पर जोर दिया गया है। ‘शरीरमाघ्यं खलु धर्म साधनम्' -शरीर को साधना ही धर्म का साधन है। यहां हम शरीर इस शब्द को स्थूल शरीर तक सीमित नहीं करते, इस शब्द में ‘सूक्ष्म' और 'कारण' इन दोनों ही शरीरों का समावेश है। इनका स्वस्थ न होना ही (रोग युक्त होना ही) समूची अव्यवस्था का करण है। ‘साम्य' की स्थिति ही योग साधना का मूलमंत्र है और साध्य भी।
यहां एक बात और सही तरह से हमें समझ लेनी चाहिए कि स्वस्थ रहने के लिए न तो हमें किसी स्वास्थ्य केंद्र की जरूरत है, ना ही किसी चिकित्सक की और ना ही औषधि की क्योंकि स्वस्थ रहना तो हमारे अपने हाथ में है। लेकिन आश्चर्य है कि हम अपनी लापरवाही को छिपाने के लिए सदा ही परिस्थितियों की दुहाई देते हैं। मेरा विश्वास है कि जितना समय हम डॉक्टरों के पास चक्कर काटने में लगाते हैं या रोगी होकर खराब करते हैं, उससे आधा समय भी यदि योग की क्रियाओं के लिए दें, तो न तो समय की बरबादी हो और ना ही धन का अपव्यय।
भौतिक साधनों को जुटाने के चक्कर में हमने बहुत कुछ खोया है। कभी-कभी तो यह संदेह होने लगता है कि साधनों को जुटाने का प्रयास करने वाला उनका उपभोग भी कर पायेगा क्या? भोगने के लिए भी तो शक्ति चाहिए, संवेदना चाहिए, और ये दोनों ही हममें से मरती जा रही हैं। योग हमें इसी संदर्भ में, सही अर्थों में स्वास्थ्य की परिभाषा देता है। यह रोग के मूल करण को पकड़ता है और उसे जड़ सहित नष्ट करने का प्रयास करता है।
'स्वस्थ' होने का तात्पर्य है (स्व + स्थ), अपने में स्थित होना, जबकि हमारी सारी शक्ति बाहर की ओर दौड़ रही है। सब कुछ हम बाहर ढूंढ रहे हैं। आप अक्सर लोगों को कहते हुए सुनेंगे कि सर्दी थी इसलिए नजला-जुकाम हो गया, मौसम खराब था इसलिए बुखार को गया, जबकि असलियत यह नहीं है। स्वास्थ्य की सारी प्रक्रिया अंदर से शुरू होती है और रोग हमें अपने अंदर की ओर ले जाता है। प्रकृति (परमात्मा) ने शरीर को रचना ‘संपूर्णरूप' में की है। अपने को स्वस्थ रखने की पूरी व्यवस्था शरीर में ही है।
शरीर में विजातीय द्रव्य (विकार) के रुक जाने का नाम रोग है। आज जितने भी रोगों के नाम हैं या कल होंगे, उन सबका कारण शरीर में विकार का रुक जाना ही है। यदि हम अपने शरीर का थोड़ा-बहुत ध्यान रखें और विकार को शरीर में रुकने न दें, तो हम कभी भी रोगी न हों क्योंकि स्वास्थ्य तो शरीर के भीतरी अंगों के पुष्ट होने से ही संभव है। अब यदि रोग ने आपको दबोच ही लिया है, तो मैं यह नहीं कहता कि आप औषधि न लें, पर औषधि भी तो तभी काम करती है, जब अंदर का शरीर सक्रिय हो,; हृदय, फेफड़े, पाचनतंत्र, ग्रंथियां अपना कार्य सुचारु रूप से करें; मस्तिष्क नाड़ी-सूत्रों द्वारा शरीर का संचालन करे। क्योंकि यदि औषध ही आपको स्वास्थ्य देने वाली होती तो रोगों के उपचार के तो नये-से-नये ढंग निकल आए हैं, नयी-से-नयी औषधियां बाजार में आ गयी हैं तब तो प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ होना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है, बल्कि आज रोग और भी बढ़ गये हैं।
ऐसा नहीं कि विज्ञान और उपचार-संबंधी आविष्कार निरर्थकहैं बल्कि उनका अधिक व सुचारु रूप से लाभ उठाया जा सकता है, यदि हम सिर्फ औषधि पर निर्भर न होकर स्वास्थ्य के असल नियमों और सिद्धांतों का भी पालन करें।
योरा मानव समाज को शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में पूरी तरह सक्षम है। जब आप शरीर से स्वस्थ व मन से शांत होते हैं, तो अपने 'स्वभाव' में आ जाते हैं। आपका स्वभाव क्या है? आपके साथ कोई धोखा करे, गाली दे, आपकी चोरी करे, दुर्व्यवहार करे, झूठ बोले- यह सब आपको अच्छा नहीं लगता। जब आप अपने स्वभाव में होंगे तो आप भी किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे, धोखा नहीं देंगे।
इन्हीं विचारों को ध्यान में रख कर इस पुस्तक को लिखा गया है। अपने 40 वर्षों के निरंतर अभ्यास एवं अनुभव के आधार पर यह पुस्तक मानव समाज को शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य व शांति देगी, ऐसी हमारी कामना है। इस पुस्तक को लिखने का हमारा विशेष उद्देश्य एक आम व्यक्ति के सम्मुख योग की कठिन विद्या तथा विधि को सरल भाषा में प्रस्तुत करना है और इसे हमने बड़े सरल तरीके व थोड़े में समझाने का प्रयास किया है। हमारा यह प्रयास है कि यह पुस्तक हर आम व्यक्ति तक पहुंच कर उसे लाभान्वित करे।
‘योगासन एवं साधना' पुस्तक साधकों के लिए अधिक-से-अधिक उपयोगी बने, इसके लिए हमने अपने अनुभवों के आधार पर पुस्तक में कई बार संशोधन किये हैं और इसे संवारा है। हमें आशा है कि साधक-गण इससे लाभ उठायेंगे और दूसरों को भी लाभान्वित करेंगे। जो कुछ भी त्रुटियां इसमें रह गई हों, उसके लिए क्षमा करते हुए यदि आप अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत कराएंगे, तभी भविष्य में इसमें और भी सुधार कर पाना संभव हो सकेगा।
—ढोलनदास अग्रवाल —डॉ. सत्यपाल ग्रोवर
योगाचार्य और प्राकृतिक चिकित्सक रोग विशेषज्ञ और प्राकृतिक चिकित्सक
कटरा तंबाकू, खारी बावली, दिल्ली-110006 जे-11, सैक्टर 12, नोएडा-201301
विषय सूची
प्रस्तावना
योगासन: एक वैज्ञानिक पद्धति
1. शरीर-रचना
□ शरीर के मुख्य संस्थान □ मेरूदंड (रीढ़) □ मांसपेशियां □ गतियां □ रक्त-संस्थान, फुफ्फुस और हृदय □ श्वासक्रम □ मस्तिष्क तथा नाड़ी मंडल □ पाचन यंत्रों का कार्य □ ग्रंथियां और उनके कार्य
2. यौगिक षट्कर्म
□ नेती □ धौति क्रिया □ कुंजल क्रिया (गज करणी) □ बस्ति क्रिया □ नौलि क्रिया □ कपालभाति □ त्राटक क्रिया
3. अष्टांग योग
□ यम □ नियम □ आसन □ प्राणायाम □ प्रत्याहार □ धारणा □ ध्यान □ समाधि
4. योगासनों का महत्व
□ स्वास्थ्य ही प्रसन्नता है □ स्वास्थ्य के लिए व्यायाम जरूरी □ योगासन ही क्यों? □ ध्वनि योग
5. योगासन: नियम और विधि
□ रोगियों के लिए आसनों का क्रम
6. योगासन
□ पद्मासन □ बद्धपद्मासन □ सिद्धासन □ ज्ञानमुद्रा □ ब्रह्मांजलि □ स्वास्थ्यासन □ त्रिकोणासन □ अर्द्धचंद्रासन □ सूर्य नमस्कार □ ताड़ासन □ नाव आसन □ कमरचक्र आसन □ जानुशिरासन (महामुद्रा) □ पश्चिमोत्तानासन □ कोणासन 58 □ आकर्णधनुरासन □ योग मुद्रा □ गर्भासन □ गोरक्षासन □ गोमुखासन □ अर्द्धमत्स्येंद्रासन □ पूर्णमत्स्येंद्रासन □ वज्रासन □ उष्ट्राग्रसन □ सुप्तवज्रासन □ शशांकासन □ मयूरासन □ शिथिलासन □ भुजंगासन □ शलभासन □ सर्पासन □ नौका आसन □ धनुरासन □ पदोत्तानासन □ हस्तपादोत्तानासन □ मकरासन □ पवनमुक्तासन □ चक्रासन □ उपासन □ हलासन □ सर्वांगासन □ मत्स्यासन □ शीर्षासन □ शवासन □ सिंहासन □ हंसना □ योगनिद्रा
7. प्राणायाम
□ पंच प्राण □ बंध □ नाड़िया □ प्राणायाम □ प्राणायाम के भेद □ अग्रिसार प्राणायाम □ कपालभाति प्राणायाम □ भस्त्रिका प्राणायाम □ शीतली प्राणायाम □ शीतकारी प्राणायाम □ सूर्यभेदी प्राणायाम □ उज्जायी प्राणायाम □ भ्रामरी प्राणायाम □ नाड़ीशोधन प्राणायाम
8. ध्यान
□ मन का स्वभाव जानें □ ध्यान : एक व्यावहारिक प्रक्रिया □ ध्यान के संबंध में चंद बातें □ ध्यान के साधन □ आसन □ प्राणायाम □ विचार-दर्शन □ विचार-सर्जन □ विचार-विसर्जन □ त्राटक □ ध्वनि-योग □ अजपा-जप □ चक्रों पर ध्यान □ चक्रविवरणी □ एक उत्तम साधना
9. चक्षु व्यायाम
□ लंबवत् गति □ आयताकार गति □ कर्णरेखावत् गति □ गोलाकार गति □ दूर और नजदीक लाना □ झूला टाइप व्यायाम □ जल्दी-जल्दी पलकें गिराना (ब्लिंकिंग) □ हथेलियों से आखें ढंकना (पामिंग) □ ठंडे पानी से छींटें मारना □ त्रिफला के पानी से आंखें धोना □ सूरज की रोशनी ग्रहण करना □ सूर्य दर्शन □ सूर्य की किरणों का पानी से होकर आंखों पर पड़ना □ हरे पत्तों से सूर्य को देखना
10. मालिश
□ मालिश के विशेष लाभ □ मालिश के प्रकार □ मालिश कैसे करें?
11. आपकी दिनचर्या
□ नित्यकर्म 121 □ दांतों की सफाई □ स्नान □ कपड़े □ निद्रा □ व्यवहार
12. भोजन
□ भोजन के कार्य □ जैसा हो भोजन, वैसे बनें हम □ भोजन कैसा हो? □ उपवास: छोटी-मोटी बीमारियों का अचूक इलाज □ भोजन कब करें? □ भोजन कब न करें? 132
13. रोगों के कारण और निवारण
□ स्वास्थ्य का सही अर्थ □ रोग के कारण: हमारी अपनी लापरवाहियां □ उपचार अर्थात् शरीर को पूर्ण विश्राम □ तीव्र रोग: शरीर को शुद्ध करने का स्वाभाविक प्रयास □ जीर्ण रोग : कमजोर जीवन शक्ति के परिणाम □ मारक रोग अर्थात् जीर्णरोग का सही इलाज न होना
14. रोग द्वारा रोगों का उपचार
□ कब्जा □ बवासीर □ अपच व गैस के रोग □ मोटापा □ वीर्य संबंधी रोग □ मधुमेह □ नाक, कान, गले के रोग □ यकृत के रोग □ दमा तथा फेफड़ों के रोग □ हाई ब्लड प्रैशर □ लो ब्लड प्रैशर □ धरन □ सिर दर्द □ सर्वाइकल स्पोंडेलार्हटस □ हर्निया □ हृदय रोग □ जोडों के दर्द और गठिया □ अनिद्रा तथा अन्य स्नायु रोग □ गुर्दे की दर्दें □ मासिक धर्म के रोग □ गायत्री मंत्र-वैदिक प्रार्थना

योगासन: एक वैज्ञानिक पद्धति
योग जीने की कला है और योगासन एक वैज्ञानिक पद्धति। यही एक ऐसा व्यायाम है जो हमारे आंतरिक शरीर पर प्रभाव डालता है। शरीर और मन का स्वस्थ रहना हमारे अंदर के अंगों-हृदय, फेफड़े, पाचन-संस्थान, ग्रंथियों, मस्तिष्क, नाड़ियों आदि- के स्वस्थ व सक्रिय रहने पर निर्भर करता है। यदि अंदर के अंग सक्रिय हैं, शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति काम कर रही है तो दवाई से भी काम लिया जा सकता है, नहीं तो वह भी अपना बिष छोड़ जाती है और रोगी को और कई नये रोग दे जाती है।
शरीर के अंदर की शक्ति को जगाने का काम योगासन व अन्य योगक्रियाएं कर सकती हैं। योगासन करते समय हम अपने शरीर को तोड़ते-मरोड़ते हैं, शरीर को तानते और ढीला करते हैं, जिससे हमारी रक्त-नलिकाएं साफ व शुद्ध होती हैं, जिससे हृदय के सारे शरीर को शुद्ध रक्त पहुंचाने और विकारयुक्त को वापस हृदय में लाने में सुविधा होती है। ह

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