Chanakya Neeti in Hindi
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Chanakya Neeti in Hindi , livre ebook

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Description

One of the greatest figures of wisdom and knowledge in the Indian history is Chanakya. Chanakya is regarded as a great thinker and diplomat in India who is traditionally identified as Kautilya or Vishnu Gupta. Originally a professor of economics and political science at the ancient Takshashila University, Chanakya managed the first Maurya Emperor Chandragupta's rise to power at a young age. Instead of acquiring the seat of kingdom for himself, he crowned Chandragupta Maurya as the emperor and served as his chief advisor. Chanakya Neeti is a treatise on the ideal way of life, and shows Chanakya's deep study of the Indian way of life. These practical and powerful strategies provide a path to live an orderly and planned life. If these strategies are followed in any sphere of life, victory is certain. Chanakya also developed Neeti-Sutras (aphorisms ? pithy sentences) that tell people how they should behave. Chanakya used these sutras to groom Chandragupta and other selected disciples in the art of ruling a kingdom. But these sutras are also relevant in this modern age and are very useful for us. For the first time, Chanakya Neeti and Chanakya Sutras are compiled in this book to make Chanakya?s invaluable wisdom easily available to the common readers. This book presents Chanakya?s powerful strategies and principles in a very lucid manner for the benefit of our valuable readers.

Informations

Publié par
Date de parution 01 juin 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9788128819568
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0166€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

आचार्य विष्णुगुप्त (चाणक्य) द्वारा प्रणीत चाणक्य नीति का मुख्य विषय मानव मात्र को जीवन के प्रत्येक पहलू की व्यावहारिक शिक्षा देना हैं। इसमें मुख्य रूप से धर्म, संस्कृति, न्याय, शांति, सुशिक्षा एवं सर्वतोमुखी मानव-जीवन की प्रगति की झांकियां प्रस्तुत की गई हैं। आचार्य चाणक्य के नीतिपरक इस महत्वपूर्ण ग्रंथ में जीवन-सिद्धान्त और जीवन व्यवहार तथा आदर्श यथार्थ का बड़ा सुन्दर समन्वय देखने को मिलता है। जीवन की रीति-नीति सम्बन्धी बातों का जैसा अद्भुत और व्यावहारिक चित्रण यहां मिलता है अन्यत्र दुर्लभ है। इसी लिए यह ग्रन्थ पुरे विश्व में समादृत है।
आचार्य चाणक्य प्रणीत
चाणक्य नीति
"जो कोई भी व्यक्ति इस नीति शास्त्र का मन से अध्ययन करेगा वह जीवन में कभी धोखा नहीं खाएगा, सफलता सदा उसके कदम चूमेगी।"

eISBN: 978-81-2881-956-8
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रा. लि .
X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया,
फेस-II नई दिल्ली-110020
फोन 011-40712200
ईमेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइड : www.diamondbook.in
संस्करण : 2015
Chanakya Neeti
By - Ashwani Prashar
चाणक्य : एक संक्षिप्त परिचय
प्राचीन भारतीय संस्कृत वांङग्मय के इतिहास में आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य अपने गुणों से मंडित, राजनीति विशारद, आचार-विचार के मर्मज्ञ, कूटनीति में सिद्धहस्त एवं प्रवीण रूप में ख्यातनाम हैं। उन्होंने नंद वंश को समूल नष्ट कर उसके स्थान पर अपने सुयोग्य एवं मेधावी वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिंहासनारूढ़ करके अपनी जिस विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है। मौर्य वंश की स्थापना आचार्य चाणक्य की एक महती उपलब्धि है।
यह वह समय था जब मौर्य काल के प्रथम सिंहासनारूढ़ चंद्रगुप्त मौर्य शासक थे। उस समय चाणक्य राजनीति गुरु थे। आज भी कुशल राजनीति विशारद को चाणक्य की संज्ञा दी जाती है। चाणक्य ने संगठित, संपूर्ण आर्यावर्त का स्वप्न देखा था, तदनुरूप उन्होंने सफल प्रयास किया था।
चाणक्य अनोखे, अद्भुत, निराले, ऐसे कुशल राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने मगध देश के नंद राजाओं की राजसत्ता का सर्वनाश करके ‘मौर्य राज्य’ की स्थापना की थी।
चाणक्य का जन्म का नाम विष्णुगुप्त था और चणक नामक आचार्य के पुत्र होने के कारण वह ‘चाणक्य’ कहलाए। कुछ लोगों का मत है कि अत्यंत कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उनका नाम ‘चाणक्य’ पड़ा। कुटिल राजनीति विशारद होने के कारण इन्हें ‘कौटिल्य’ नाम से भी संबोधित किया गया। पर संभवतः यह इनके गोत्र का नाम रहा हो, किन्तु अनेक विद्वानों के मतानुसार कुटिल नीति के निर्माता होने के कारण इनका नाम कौटिल्य पड़ा। म.म. गणपति शास्त्री ने ‘कुटिल’ गोत्रोत्पन्न पुमान् कौटिल्य : इस व्युत्पत्ति के अनुसार इन्हें कौटिल्य गोत्र का मानने पर बल दिया है। आप चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री, गुरु, हितैषी तथा राज्य के संस्थापक थे। चंद्रगुप्त मौर्य को राजा के पद पर प्रतिष्ठित करने का कार्य इन्हीं के बुद्धि-कौशल का परिणाम था।
चाणक्य के जन्म-स्थान के बारे में इतिहास मौन है। परंतु उनकी शिक्षा-दीक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई थी। वह स्वभाव से अभिमानी, चारित्रिक एवं विषय-दोषों से रहित स्वरूप से कुरूप, बुद्धि से तीक्ष्ण, इरादे पक्के, प्रतिभा धनी, युगद्रष्टा एवं युगस्रष्टा थे। जन्म से पाटलिपुत्र के रहनेवाले चाणक्य के बुद्धि-बल का पूरा विकास तक्षशिला के आचार्यों के संरक्षण में हुआ। अपने प्रौढ़ ज्ञान के प्रभाव से वहां के विद्वानों को प्रसन्न कर चाणक्य राजनीति का प्राध्यापक बना। देश की दुर्व्यवस्था को देखकर उसका हृदय द्रवित हो उठा। इसके लिए उसने विस्तृत कार्यक्रम बनाकर देश को एक सूत्र में बांधने का संकल्प किया और इसमें उसे सफलता भी मिली।
चाणक्य के जीवन का उद्देश्य केवल ‘बुद्धिर्यस्य बलं तस्य’ ही था। इसलिए चाणक्य को अपनी बुद्धि एवं पुरुषार्थ पर पूरा भरोसा था। वह ‘दैवाधीन जगत्सर्व’ सिद्धान्त को भ्रम मानता था।
चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य का समय एक ही है‒325 ई.पू. मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त का समय था, यही समय चाणक्य का भी है। चाणक्य का निवास स्थान शहर से बाहर एक पर्णकुटी थी जिसे देखकर चीन के ऐतिहासिक यात्री फाह्यान ने कहा था‒"इतने विशाल देश का प्रधानमंत्री ऐसी कुटिया में रहता है!" तब उत्तर था चाणक्य का‒"जहां का प्रधानमंत्री साधारण कुटिया में रहता है वहां के निवासी भव्य भवनों में निवास किया करते हैं और जिस देश का प्रधानमंत्री राजप्रासादों में रहता है वहां की सामान्य जनता झोंपड़ियों में रहती है।"
चाणक्य की झोपड़ी में एक ओर गोबर के उपलों को तोड़ने के लिए एक पत्थर पड़ा रहता था, दूसरी ओर शिष्यों द्वारा लायी हुई कुशा का ढेर लगा रहता था। छत पर समिधाएं सूखने के लिए डाली हुई थीं, जिसके भार से छत नीचे झुक गयी थी। ऐसी जीर्ण-शीर्ण कुटिया चाणक्य की निवास स्थली थी।
आह! वह देश महान क्यों न होगा जिसका प्रधानमंत्री इतना ईमानदार, जागरूक, चरित्र का धनी व कर्तव्यपरायण हो।
इन भावों को देखकर लोग दंग रह जाते हैं। हमारे मन रूपी वीणा के समस्त संवेदनशील तार इस दृश्य को देखकर एक साथ झंकृत हो उठते हैं। उन तारों से ऐसी करुणा की रागिनी फूटती है कि चाणक्य की सम्पूर्ण राजनीति की उच्छृंखलता उसी में धीरे-धीरे विलीन हो जाती है। उसके ज्योतिष्चक्र के सामने आंखें मींचकर चाणक्य को त्यागी एवं तपस्वी के रूप में देखकर सिर झुक जाता है।
2500 वर्ष ई.पू. चणक के पुत्र विष्णुगुप्त ने भारतीय राजनयिकों को राजनीति की शिक्षा देने के लिए अर्थशास्त्र, लघु चाणक्य, वृद्ध चाणक्य, चाणक्य-नीति शास्त्र आदि ग्रंथ के साथ व्याख्यायमान सूत्रों का निर्माण किया था।
संस्कृत साहित्य में नीतिपरक ग्रन्थों की कोटि में चाणक्य नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें सूत्रात्मक शैली में जीवन को सुखमय एवं सफल-सम्पन्न बनाने के लिए उपयोगी अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। चाणक्य के अनुसार आदर्श राज्य संस्था वही है जिसकी योजनाएं प्रजा को उसके भूमि, धन-धान्यादि पाते रहने के मूलाधिकार से वंचित कर देनेवाली न हों, उसे लम्बी-चौड़ी योजनाओं के नाम से कर-भार से आक्रांत न कर डालें। राष्ट्रोद्धारक योजनाएं राजकीय व्ययों में से बचत करके ही चलाई जानी चाहिए। राजा का ग्राह्य भाग देकर बचे प्रजा के टुकड़ों के भरोसे पर लंबी-चौड़ी योजना छेड़ बैठना प्रजा का उत्पीड़न है।
चाणक्य का साहित्य समाज में शांति, न्याय, सुशिक्षा, सर्वतोन्मुखी प्रगति सिखानेवाला ज्ञान भंडार है। राजनीतिक शिक्षा का यह दायित्व है कि वह मानव समाज को राज्य संस्थापन, संचालन, राष्ट्र संरक्षण-तीनों काम सिखाए।
दुर्भाग्य है भारत का कि चाणक्य के ज्ञान की उपेक्षा करके देशी-विदेशी शत्रुओं को आक्रमण करने का निमंत्रण देकर अपने को शत्रुओं का निरुपाय आखेट बनाने वाली आसुरी शिक्षा को अपना लिया है। नैतिक शिक्षा, धर्म शिक्षा का लोप हो गया है। चरित्र निर्माण को बहिष्कृत कर दिया है। मात्र लिपिक (क्लर्क) पैदा करनेवाली, सिद्धांतहीन, पेट-पालन की शिक्षा रह गई है। समाज धीरे-धीरे आसुरी रूप लेता जा रहा है। अर्थ-दास सम्मान या आत्मगौरव की उपेक्षा करता है। स्वाभिमान का जनाजा निकाला जा रहा है।
आज के स्वार्थपूरित, अज्ञानांधकार में डूबे शुद्ध स्वार्थी राजनीतिक परिदृश्य में मात्र चाणक्य का ज्ञानामृत ही भारत का पथ प्रदर्शक बनने की क्षमता रखता है। वही हमें राजनीतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक मुक्ति मार्ग दिखा सकता है। आज की सदोष राष्ट्रीय परिस्थिति इस वर्तमान कुशिक्षा के कारण है। राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रहित तथा मनु के आदर्श आज लोप हो चुके हैं। अहंकारी विद्या का ही बोलबाला है। सांस्कृतिक स्वरूप ध्वंस हो चुका है। निष्काम सेवा भाव का दिवाला निकल गया है। प्रभुता लोभी नेतापन की मदिरा ने बौरा दिया है। चाणक्य की राजनीतिक चिंता-धारा को समाविष्ट करके ही भारत का उद्धार हो सकता है। सदाचारी, व्यवहार कुशल एवं धर्मनिष्ठ और कर्मशील मानव के समुचित विकास की पर्याप्त संभावनाएं हैं। इसलिए यह नीति पाठ आज भी प्रासंगिक है।
34 – कादम्बरी 19/9 रोहाणी, नई दिल्ली - 110085
— अश्विनी पाराशर
अनुक्रमणिका चाणक्य नीति पहला अध्याय दूसरा अध्याय तीसरा अध्याय चौथा अध्याय पाँचवां अध्याय छठा अध्याय सातवां अध्याय आठवां अध्याय नौवां अध्याय दसवां अध्याय ग्यारहवां अध्याय बारहवां अध्याय तेरहवां अध्याय चौदहवां अध्याय पंद्रहवां अध्याय सोलहवां अध्याय सत्रहवां अध्याय चाणक्य सूत्र सूत्र
 
 
 
साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रा मित्राणि बान्धवाः। ये च तैः सह गन्ता गन्तारस्तद्धर्मात् सुकृतं कुलम।।
चा.नी.4/2
कामधेनु गुणा विद्या ह्य काले फलदायिनी। प्रवासे मातृ सदृशी विद्या गुप्तं धनं स्मृत्म्।।
चा.नी.4/2
चाणक्य नीति
चाणक्य नीति प्रथम अध्याय
ईश्वर प्रार्थना
प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम्। नाना शास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीति समुच्चयम्।।1।।
तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) के स्वामी भगवान विष्णु के चरणों में शीश नवाकर प्रणाम करके अनेक शास्त्रों से उद्धृत राजनीति के संकलन का वर्णन करता हूं।
चाणक्य यहां राजनीति सम्बन्धी विचारों के प्रतिपादन के समय कार्य के निर्विघ्न समाप्ति के भाव से कहते हैं कि‒मैं कौटिल्य सबसे पहले तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को सिर नवाकर प्रणाम करता हूं। इस पुस्तक में मैंने अनेक शास्त्रों से चुन-चुनकर राजनीति की बातें एकत्रित की हैं। यहां मैं इन्हीं का वर्णन करता हूं।
चाणक्य (विष्णुगुप्त) के लिए कौटिल्य का सम्बोधन इनके कूटनीति में प्रवीण होने के कारण प्रयोग किया है। यह एक तथ्य है कि चाणक्य की नीति राजा एवं प्रजा, दोनों के लिए ही प्रयोग किए जाने के लिए थी। राजा के द्वारा निर्वाह किए जानेवाला प्रजा के प्रति धर्म ही राज धर्म कहा गया है और प्रजा द्वारा राजा अथवा राष्ट्र के प्रति निर्वाह किया धर्म ही प्रजा धर्म कहा गया। इस धर्म का उपदेश ही नीतिवचन के रूप में निर्विघ्न पूर्ण हो, इसी आशय से प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में विष्णु की आराधना से कार्यारम्भ किया गया है।
अच्छा मनुष्य कौन
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः। धर्मोपदेशविश्यातं कार्याऽकार्याशुभाशुभम्।।2।।
धर्म का उपदेश देने वाले, कार्य-अकार्य, शुभ-अशुभ को बताने वाले इस नीतिशास्त्र को पढ़कर जो सही रूप में इसे जानता है, वही श्रेष्ठ मनुष्य है।
इस नीतिशास्त्र में धर्म की व्याख्या करते हुए क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए; क्या अच्छा है, क्या बुरा है इत्यादि ज्ञान का वर्णन किया गया है। इसका अध्ययन करके इसे अपने जीवन में उतारनेवाला मनुष्य ही श्रेष्ठ मनुष्य है।
आचार्य विष्णुगुप्त (चाणक्य) का यहां कहना है कि ज्ञानी व्यक्ति नीतिशास्त्र को पढ़कर जान लेता है कि उसके लिए करणीय क्या है और न करने योग्य क्या है। साथ ही उसे कर्म के भले-बुरे के बारे में भी ज्ञान हो जाता है। कर्तव्य के प्रति व्यक्ति द्वारा ज्ञान से अर्जित यह दृष्टि ही धर्मोपदेश का मुख्य सरोकार और प्रयोजन है। कार्य के प्रति व्यक्ति का धर्म ही व्यक्ति धर्म (मानव धर्म) कहलाता है अर्थात मनुष्य अथवा किसी वस्तु का गुण और स्वभाव जैसे अग्नि का धर्म जलाना और पानी का धर्म बुझाना है उसी प्रकार राजनीति में भी कुछ कर्म धर्मानुकूल होते हैं और बहुत कुछ धर्म के विरुद्ध होते हैं।
गीता में कृष्ण ने युद्ध में अर्जुन को क्षत्रिय का धर्म इसी अर्थ में बताया था कि रणभूमि में सम्मुख शत्रु को सामने पाकर युद्ध ही क्षत्रिय का एकमात्र धर्म होता है। युद्ध से पलायन या विमुख होना कायरता कहलाती है। इसी अर्थ में आचार्य चाणक्य धर्म को ज्ञानसम्मत मानते हैं।
राजनीति : जग क्लयाण के लिए
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया। येन विज्ञान मात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते।।3।।
मैं (चाणक्य) लोगों की भलाई की इच्छा से अर्थात् लोकहितार्थ राजनीति के उस रहस्य वाले पक्ष को प्रस्तुत करूंगा, जिसे केवल जान लेने मात्र से ही व्यक्ति स्वयं को

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