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Description
Sujets
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 10 septembre 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789390088188 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0118€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
महिला सशक्तीकरण और भारत
eISBN: 978-93-9008-818-8
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
Mahila Sashaktikaran Aur Bharat
By - Dr. Rakesh Kumar Arya
लेखकीय निवेदन
प्राचीन काल में भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत ही सम्मान पूर्ण थी। उन्हें पूजनीय शक्ति के रूप में पुरुष वर्ग सम्मान देता था। यही कारण है कि वेदों में और अन्य आर्ष ग्रंथों में नारी के लिए कहीं पर भी ऐसा कोई एक शब्द भी प्रयोग नहीं किया गया, जिससे उसकी गरिमा और महिमा को ठेस पहुंचे। इसके विपरीत मनु जैसे ऋषि-मनीषियों ने अपने-अपने ग्रंथों में उसकी गरिमा और महिमा को सम्मानित करने के पक्ष में अनेकों श्लोकों की रचना की। जिससे भारतवर्ष में दीर्घकाल तक नारी को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा। नारी को पुरुष वर्ग ने सम्मान का स्थान दिया और उसे बराबरी के मौलिक अधिकार प्रदान कर उसके व्यक्तित्व के विकास में पुरुष वर्ग स्वयं भी सहायक बना। यही कारण है कि हमारे यहां अपाला, घोषा, सावित्री, सीता, कौशल्या, गार्गी, मैत्रेयी आदि जैसी अनेकों विदुषी सन्नारियों ने जन्म लिया।
फिर धीरे-धीरे पतन की वह अवस्था आई जब नारी को भारत में ही लोगों ने ‘पैरों की जूती’ माना और जब चाहा पैरों की जूती की भांति उन्हें बदल कर दूसरी जूती पहन ली। बस, इसी सोच ने भारत की नारी को पतितावस्था में पहुंचा दिया। नारी के प्रति पुरुष वर्ग की ऐसी घृणित और अमानवीय सोच ने न केवल नारी का शोषण किया, अपितु समाज भी इससे पिछड़ने की अवस्था में पहुंचता चला गया। क्योंकि जब माताएं स्वयं अशिक्षित, अनपढ़ और गंवार होंगी तो संतान का वैसा बनना स्वाभाविक है। नारी को इस नारकीय जीवन से उभारने में राजा राममोहन राय, महर्षि दयानंद जैसे अनेकों समाजसेवियों व समाज सुधारकों के क्रांतिकारी आंदोलनों ने विशेष भूमिका निभाई। इसी का परिणाम है कि आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं।
नारी को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पद तक पहुंचाने में भारत को बहुत बड़ा परिश्रम करना पड़ा है। इसके लिए यहां पर अनेकों समाज सुधारकों ने अलग-अलग समय पर आंदोलन चलाए। लोगों को जागरूक किया और महिला शिक्षा पर बल देकर उसे सुशिक्षित और सुसंस्कारित बनाने की दिशा में ठोस कार्य किए।
पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों के साहित्य का यदि अनुशीलन किया जाए तो स्पष्ट पता चलता है कि वैदिक काल से ही भारत में नारियों की शिक्षा पर बल दिया जाता रहा है। ऋग्वेदिक ऋचाएं यह स्पष्ट करती हैं कि नारियों की शिक्षा आदि संपन्न होने के पश्चात ही उनका विवाह संस्कार समान गुण, कर्म, स्वभाव वाले युवाओं के साथ संपन्न किया जाता था। पुत्री का विवाह दूर देश में किए जाने की परंपरा थी। जिससे अच्छी संतति प्राप्त हो। इसके अच्छे परिणाम भी हमारे समाज को मिलते रहे। बेटियों को अपना वर स्वयं चुनने का भी अधिकार था, परंतु इसके पीछे एक शर्त भी थी कि वह अपने जैसे गुण, कर्म, स्वभाव वाले युवक को ही अपने लिए चुनें। इसका अभिप्राय था कि शारीरिक वासनात्मक लगाव को प्राथमिकता न देकर आंखें खुली रखकर अपना जीवन साथी चुनने का ही अधिकार नारी को था। ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं, जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं।
जब भारत में इस्लामिक आक्रमण प्रभावी हुए तो इस्लाम के मानने वालों के नारी के प्रति शोषण और उत्पीड़न के व्यवहार को देखकर भारतवासियों में कई सामाजिक दोष उत्पन्न हुए। लोगों ने बेटियों को पढ़ाना बंद कर दिया। इसके पीछे कारण यही था कि इस्लाम के मानने वालों से लड़कियों को बचाया जाए।
इसके अतिरिक्त सती प्रथा, जौहर, बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं भी इसी काल में पनपीं। इसके पीछे भी इस्लाम का आतंक और भय ही एक कारण था। क्योंकि जिनके पति युद्ध में मारे जाते थे ऐसी महिलाएं अपने आपको मुस्लिम सिपाहियों के हाथ न लगने देकर स्वयं जलती चिता में कूदकर अपने पति के साथ परलोकगमन करने को ही अपने लिए उपयुक्त मानती थीं। यवन और मुगलों के अत्याचारों से बचने के लिए और उनके हाथों न पड़ने को ही अपना धर्म मानकर इन नारियों ने जौहर और सती प्रथा को अपने लिए एक हथियार मान लिया और उसे ‘युग धर्म’ स्वीकार कर स्वेच्छा से अंगीकार कर लिया। कई लोगों ने-जवान बेटी को मुसलमान न उठा ले जाएं-इसलिए उस स्थिति से बचने के लिए बाल विवाह प्रथा को प्रश्रय दिया। बाबर एवं मुगल साम्राज्य के इस्लामी आक्रमण के साथ और इसके बाद ईसाइयत ने महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों को सीमित कर दिया।
भारत में प्राचीन काल से ही पर्दा प्रथा नहीं थी, परंतु जब मुसलमान भारत में आए और उन्होंने महिलाओं पर अपने अमानवीय अत्याचारों को ढहाना आरंभ किया तो उनके अत्याचारों से बचने के लिए भारत के लोगों ने भी महिलाओं को पर्दे में रखना आरंभ कर दिया। इसी काल में मंदिरों में भी देवदासियां रखने का प्रचलन आरंभ हुआ। जिससे वहां पर महिलाओं के यौन शोषण की गंभीर घटनाएं होने लगीं। बहुविवाह की प्रथा हिन्दू क्षत्रिय शासकों के द्वारा बड़ी तेजी से अपनाई गई।
यद्यपि रजिया सुल्ताना, जहांगीर की पत्नी नूरजहां, और शाहजहां की पुत्रियां जहाँनारा व रोशनारा, चांदबीबी जैसी कई मुस्लिम महिलाओं के राजनीति में विशेष हस्तक्षेप करने या रुचि लेने के किस्से प्रचलित हैं, परंतु यदि उनके जीवन को भी निकटता से देखा व समझा जाए तो पता चलता है कि वह भी पुरुष वर्ग के अत्याचारों और उत्पीड़न का किसी ना किसी क्षेत्र में शिकार बनी रहीं।
यही वह काल था जब रानी, कर्मवती, दुर्गावती और शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई जैसी महान क्रांतिकारी नारियां भी इस देश में हुईं। जिन्होंने भारत के प्राचीन गौरव को स्थापित करने और देश से विदेशी मुगल बादशाहों के शासन को समाप्त करने का बीड़ा उठाया और अपने समकालीन हिंदू युवाओं को या तो प्रेरित किया या उनका नेतृत्व किया। इन महान क्रांतिकारी महिलाओं के कारण समाज में विशेष जागृति भी आई। हमें यह मानने में भी कोई संकोच नहीं है कि नारी शक्ति के इस प्रकार के आचरण ने भारत की अंतश्चेतना को जीवित रखने में बहुत अधिक सहायता प्रदान की। उन नारियों ने भारत के प्राचीन गौरव के अनुसार भारतीय समाज को बनाने के लिए और प्राचीन भारतीय शासन प्रणाली को लागू करने के लिए तत्कालीन भारत के युवाओं को प्रेरित किया।
इसी समय संत-कवयित्री मीराबाई भक्ति आंदोलन के सबसे महत्त्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं। इस अवधि की कुछ अन्य संत-कवयित्रियों में अक्का महादेवी, रामी जानाबाई और लाल देद सम्मिलित हैं।
पंजाब की धरती पर इन दिनों गुरु नानक देव जैसे महान संत का प्रादुर्भाव हुआ। उनके द्वारा चलाई गई सिक्खों की गुरु परंपरा में प्रत्येक गुरु ने सिक्खों और समाज के दूसरे वर्गों में जा-जाकर लोगों को नारी के प्रति सहनशील बनने और सम्मान भाव प्रदर्शित करने का उपदेश दिया। उन्होंने नारी शिक्षा के लिए भी लोगों को प्रेरित किया। साथ ही महिलाओं को समान अधिकार देने और उनकी गरिमा और महिमा को वेदों के अनुसार स्थापित करने की भावना पर भी बल दिया।
अंग्रेजों के समय में हमारे कई समाज सुधारकों ने सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के विरुद्ध संघर्ष किया। सती प्रथा को 1829 में अंग्रेजों ने समाप्त कर दिया।
कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी, कित्तूर चेन्नम्मा, तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का झाँसी की महारानी रानी लक्ष्मीबाई, अवध की सह-शासिका बेगम हजरत महल, चंद्रमुखी बसु, कादंबिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी आदि कुछ ऐसी विशिष्ट महिलाएं रहीं जिन्होंने अपने-अपने समय में भारतीय इतिहास को सही दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई या अपने किसी भी महान कार्य से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कराया।
1917 में महिलाओं के पहले प्रतिनिधिमंडल ने विदेश सचिव से भेंट करके पहली बार यह संकेत दिया कि महिलाएं अपने राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के प्रति कितनी जागरूक हैं? 1927 में पहली बार भारत वर्ष में अखिल भारतीय महिला शिक्षा सम्मेलन का आयोजन पुणे में किया गया था। 1929 में मोहम्मद अली जिन्ना के प्रयासों से बाल विवाह निषेध अधिनियम को पारित किया गया जिसके अनुसार एक लड़की के लिए शादी की न्यूनतम उम्र चौदह वर्ष निर्धारित की गयी थी। महात्मा गांधी जी ने भी कई अवसरों पर बाल विवाह न करने और विधवाओं के पुनर्विवाह करने की बात कही। भिकाजी कामा, डॉ. एनी बेसेंट, प्रीतिलता वाडेकर, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गाँधी कुछ ऐसी प्रसिद्ध महिलाएं हैं जो उन्होंने कांग्रेसी या किसी अन्य संगठन के माध्यम से राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया। मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख आदि। सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट कैप्टन लक्ष्मी सहगल सहित पूरी तरह से महिलाओं की सेना थी। एक कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला और भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं।
भारत में महिलाएं अब सभी प्रकार की गतिविधियों जैसे कि शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि में भाग ले रही हैं। इंदिरा गांधी जिन्होंने कुल मिलाकर पंद्रह वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की, विश्व की सबसे लंबे समय तक सेवारत महिला प्रधानमंत्री हैं। इसी प्रकार भारत की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को मिलता है, जो अपने समय में कई प्रमुख पदों पर रहीं।
भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं को समान अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने (अनुच्छेद 15 (1)), अवसर की समानता (अनुच्छेद 16), समान कार्य के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39 (घ)) की गारंटी देता है। इसके अलावा यह महिलाओं और बच्चों के पक्ष में राज्य द्वारा विशेष प्रावधान बनाए जाने की अनुमति देता है (अनुच्छेद 15(3)), महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का परित्याग करने (अनुच्छेद 51(ए)(ई)) और साथ ही काम की उचित एवं मानवीय परिस्थितियाँ सुरक्षित करने और प्रसूति सहायता के लिए राज्य द्वारा प्रावधानों को तैयार करने की अनुमति देता है। (अनुच्छेद 42) जिन्हें समझकर महिला सशक्तिकरण की भावना को भारत में बलवती किया जा सकता है।
इतना सब कुछ होने के उपरांत भी भारत में तलाक जैसी कुप्रथा जहां मुस्लिम महिलाओं के लिए जी का जंजाल बनी रही हैं, वहीं हिंदू महिला के लिए भी कम चुनौतियां नहीं हैं। वह भी पुरुष वर्ग के उत्पीड़न का शिकार है। घरेलू हिंसा को आज भी देहाती महिला बहुत अधिक झेलती है। महिलाओं को सारा दिन परिश्रम करना पड़ता है। दूरदराज के क्षेत्रों में ऐसी स्थितियां हैं जहां पर महिलाओं से सारे दिन बेगार कराई जाती है और पुरुष वर्ग आराम से ताश खेलता है।
महिलाओं के साथ ऐसे अत्याचार उस समय हो रहे हैं जब हम बहुत अधिक महिला जागरूकता की बात करते हैं। इतना ही नहीं यहां पर नित्य प्रति लगभग 22 बलात्कार महिलाओं के साथ होते हैं। यह सारी चुनौतियां हमें आज भी बता रही हैं कि काम करने के लिए आज भी बड़ा व्यापक क्षेत्र है। महिला सुधार के नाम पर कहने को तो कई समितियां सभा, संगठन आदि देश में चल रहे हैं परंतु इन सबकी अधिकांश की स्थिति ऐसी है कि यह दूरदराज के भारत में जाकर कुछ भी करने को तैयार नहीं है।
कहने के लिए भारत में महिला आयोग भी है, परंतु वह भी भारत की आम महिला की समस्याओं को सुनने और उन्हें सुलझाने में अपने आपको असमर्थ ही पा रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि महिला आयोग पढ़ी-लिखी महिलाओं तक सीमित होकर रह गया है। गांव की महिला न तो उस तक अपनी पकड़ बना पाती है और न ही महिला आयोग में बैठी महि