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Description
The jokes in this book are “super-hit” in the respect that they are loved and laughed at by people every time and at every place.
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 02 avril 2012 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789350573808 |
Langue | Hindi |
Poids de l'ouvrage | 4 Mo |
Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
हरीश यादव
प्रकाशक
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-813840-1-5
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020
भूमिका
चुटकुलों की पुस्तक पर क्या भूमिका बांधू? पुस्तक का पहला पन्ना पढ़िए, अगर आपके चेहरे पर मुस्कान उभरी तो मैं समझूंगा पुस्तक ने अपनी भूमिका या यूं कहें अपना परिचय स्वयं दे दिया। लेकिन चुटकुले पढ़ने का आजकल वक्त किसे है? यह ठीक भी है, लेकिन जीवन में अनेक क्षण ऐसे आते हैं जो काटे नहीं कटते। जैसे रेल या बस का सफर। उस वक्त चुटकुलों की पुस्तक—सा हमसफर आपको जरूर भायेगा। यही नहीं, रोजमर्रा की उबाऊ जिन्दगी में बोझल क्षण प्यादा है, और हलके—फुलके क्षण कम और यह और भी बोझल बन जाते हैं जब दिन—भर की परेशानियां रात की नींद भगा डालती हैं। ऐसे समय में इन गुदगुदाने वाले कुछ—एक चुटकुलों का मनन आपके दिमाग की चिंताओं को धुएं की तरह उड़ा देगा
चुटकुले व्यक्ति के उन क्षणों की यादें है जब वह बेवकूफियां करता है, जाने में और अनजाने में भी। यह बेवकूफियां सभी करते है, तभी तो चुटकुलों का मंडार चढ़ता जाता है। हँसो और हंसाओ सीरीज़ की यह तीन पुस्तके आओ हँस लें, क्या खूब चुटकुले और सुपर—हिट जोक्स् भंडार में से छंटी हुई, चुनी हुई कृतियों का संकलन है जो पति—पत्नी, प्रेमी—प्रेमिका, डॉक्टर—मरीज, सखी—सहेली, मकानदार—किरायेदार.....सभी तरह के संबंधों के एक खास पहलू—व्यंग्यात्मक पक्ष को प्रस्तुत करता है। साथ में सटीक व्यंग्य—चित्र चुटकुलों में समाहित हास्य—व्यंग्य को द्विगुणित करते हैं। इनका रसास्वादन आप हर जगह—अकेले में, मित्रों के बीच, पत्नी के साथ या फिर पार्टी में कर पायेंगे, इसी आशा के साथ यह पुस्तक आपको समर्पित है।
—लेखक
'श्रीमती जी, मैं प्यानो ठीक करने आया हूं।'
'क्या? मगर मैंने तो प्यानो ठीक करने के लिए किसी को नहीं बुलाया।'
'जी हां, आपने नहीं. आपके पड़ोसियों ने बुलाया है।'
छगन भाई बच्चे को बच्चा—गाड़ी में लेकर टहलाने निकले। जो भी रास्ते में मिला, रोककर बोला—'क्या साहब, अपने बच्चे को टहलाने निकले हैं?'
दो—चार बार उन्होंने जब्त किया, फिर बोल पड़े—'नहीं साहब, पड़ोसी का है।'
पूछने वाले ने सुनते ही जरा और झुककर देखा। फिर बोला—'तभी मेरे मन में शंका हो रही थी कि इसकी शक्ल आपके पड़ोसी से क्यों मिल रही है।'
सुरेश (अजय से)—'तुम मेरी शादी में जरूर आओगे न?'
अजय—'क्यों नहीं? मैं वैसा व्यक्ति नहीं हूं जो अपने दोस्त को मुसीबत के समय अकेला छोड़ देते है।'
प्रश्न—'बाल उगाने वाला तेल गंजे सिर पर मलने से क्या—क्या होता है?'
उत्तर—'उगलियों पर बाल उग आते हैँ।'
एक महिला (रिक्शे वाले से)—'मैं तुम्हारे रिक्शे से उतरकर जा रही थी, फिर भी तुम ने भाड़ा क्यों नहीं मांगा?'
रिक्शा वाला—'जी, मैं शरीफ औरतों से पैसे नहीं मांगता।'
महिला—'अगर मैं बिना भाड़ा दिए चली जाती तो?'
रिक्शा वाला—'तो मैं समझ जाता कि आप शरीफ नहीं हैं और फिर मैं भाड़ा मांग लेता।'
खाना खाते समय भी अपने पति को उपन्यास पढ़ते देखकर सरला रसोई से निकली और उपन्यास छीनने का प्रयास करने लगी। पति ने उस उपन्यास को न देने का प्रयास करते हुए कहा—'मैं यह तुम्हें कैसे दे सकता हूं? यही तो मेरी जान है।'
'क्या कहा? 'पत्नी ने आंखें तरेरकर पूछा, 'यह तुम्हारी जान है तो मैं क्या हूं?'
'तुम मेरी जान की दुश्मन।' पति ने कहा।
प्रोफेसर—'देखो रामू, बाहर जो आदमी खड़ा है, उससे तुमने कह दिया न कि मैं घर पर नहीं हूँ?'
रामू—'सरकार, कह तो दिया पर यह विश्वास नहीं करता।'
प्रोफेसर—'ओह, तो मुझे ही जाकर कहना पड़ेगा। मेरी बात तो यह मानेगा।'
एक मकान में गैस का सिलेंडर फटने से आग लग गई। सिलेंडर कुछ इस तरह फटा कि रसोई में मौजूद पतिं—पत्नी घर से बाहर जाकर गिरे। दोनों की अस्पताल मेँ जाकर आंखें खुलीं।
बाद में पत्नी ने किसी को बताया—'पन्द्रह सालों में यह पहला मौका था, जब मैं अपने पति के साथ घर से निकली थी।'
एक टी वी. सेल्समैन एक गृहिणी को अपनी कम्पनी के नये कलर टी.वी. की डिमॅान्स्ट्रेशन दे रहा था। यह दिखाने के लिए कि रिमोट कन्ट्रोल कितना शक्तिशाली था, वह टी.वी. को बैठक में छोड़कर रसोई में गया और वहीं से रिमोट कन्ट्रोल से उसने टी.वी. को ऑन करके उस पर चैनल बदलकर दिखाया।
एक सप्ताह बाद वह फिर वहां पहुंचा और उसने गृहिणी से टी.वी. के परफार्मेंस की बाबत सवाल किया।
'चलता तो बढिया हैँ।'—मैं—गृहिणी बोली—'लेकिन ये चैनल बदलने के लिए रिमोट लेकर हर बार रसोई में जाना बड़ी जहमत का काम है।'
'बच्चों के जन्मदिन पर बड़ों को क्यों बुलाते है?'
'जी, क्योंकि बड़े लोग ही महंगे तोहफे दे सकते है।' बच्चे ने जवाब में कहा।
सैन्सर ब्यूरो के सन्मुख एक रिपोर्टर पेश किया गया। ब्यूरो चीफ ने कहा—'तुमने ढेर सारी झूठी बातें लिखी हैं।'
'मुझे खेद है—'रिपोर्टर हड़बड़ाता हुआ बोला, 'जो दण्ड आप देगे वह मुझे मान्य होगा।'
'जरूर मिलेगा! तुम्हें सरकारी पत्र का मुख्य सम्पादक बनाया जाता है।'
नई भरती हुई खूबसूरत सेक्रेटरी ने बॅास के सामने टाइप की हुई चिटठी रखी। बॉस ने चिटठी का मुआयना किया और बोला—'अब तो तुम्हारी टाइपिंग सुधर रही है।'
'थैक्यू सर।' सेक्रेटरी इठलाकर बोली।
'मुझे सिर्फ छ: ही गलतियां दिखाई दे रही हैं।'
'थैक्यू सर।'
'अब जरा दूसरी लाइन देखें।'
वार्ड के फोन की घन्टी बजी। ड्यूटी पर तैनात नर्स ने फोन उठाया तो उससे पूछा गया—'क्या आप बता सकती है कि ग्यारह नम्बर कमरे वाले प्रवीण की तबीयत अब कैसी है?'
'वह अब बिलकुल ठीक है।' नर्स बोली—'कल उनकी छुटटी हो रही है। आप कौन बोल रहे हैं?'
'प्रवीण। कमरे मेँ तो कोई मुझे कुछ बताता ही नहीं। इसलिए पी.सी.ओ. से फोन किया है।'
भुलक्कड़ पति—'अब बताओ भुलक्कड़ कौन है? तुम बस में अपना छाता छोड़कर चली आ रही थी, मैं उसे तो ले ही आया साथ ही अपना छाता भी लाना नहीं भूला।'
श्रीमतीजी—'मगर श्रीमान्, घर से तो हम में से कोई भी छाता लेकर नहीं चला था।'
'डॉक्टर साहब।' मरीज ने बताया—'मेरी श्रवण—शक्ति इतनी कमजोर हो गई है कि मुझे अपने खांसने तक की आवाज भी सुनाई नहीं देती
डॅाक्टर ने उसे गोलियों को एक शीशी दी और बोले—'दो गोलियां रोज सोने से पहले खा लिया कीजिए।'
'इन गोलियों के इस्तेमाल से मुझे सुनाई देने लगेगा?' मरीज ने आशापूर्ण स्वर में पूछा।
'नहीं'—डॅाक्टर गम्भीर स्वर में बोला—'हमसे तुम्हारी खांसी की आवाज तेज हो जाएगी।'
'मैं एक ऐसी जगह जानता हूं, जहां नौजवान लड़कियां मनकों की एक माला के अलावा कुछ भी नहीं पहनती।'
'अच्छा, ऐसी कौन—सी जगह है?'
'उनकी गरदन।'
विवाहित भाइयों को नेक सलाह—
'केवल आज की सोचो। खाओ, पियो और मौज करो, क्योंकि हो सकता है, कल आपकी बीवी मायके से वापस आ जाए।'
'कैसे हैं जनाब?'
'बढ़िया।'
'बीवी कैसी है?'
'न होने से अच्छी है।'
डॉक्टर— (बेहद खस्ताहाल मरीज है)—'क्या कराना चाहते है आप? डॉक्टरी मुआयना या पोस्टमार्टम?'
'मम्मी, तुम्हें उस प्लेट की याद है, जिसकी तुम्हें हमेशा चिन्ता लगी रहती थी कि वह टूट न जाए?'
'हां, क्यों?'
'तुम्हारी चिंता खत्म हो गई।'
रोगी—'डॉक्टर साहब, जरा देखिए तो मेरे सीने में दिल है या नहीं?'
डॉक्टर—'पहले तुम बतलाओ कि तुम्हारी जेब में पैसे है या नहीं?'
पत्नी को पहला बच्चा होने वाला था। दूसरे महीने पति उसे चेकअप के लिए अस्पताल ले गया। लेडी डॉक्टर ने पत्नी का मुआयना किया, फिर उसके पेट पर एक मोहर लगा दी और उन्हें चलता कर दिया।
पति—पत्नी घर पहुंचे; पति उत्सुकता से मरा जा रहा था। उसने पत्नी के पेट का स्वय मुआयना किया और मोहर का अंकन पढ़ने की कोशिश की। लेकिन अक्षर इतने छोटे थे कि मोहर पढ़ी नहीं जा रहीं थी। पति एक मैग्रीफाइंग ग्लास (छोटी चीज को बड़ा करके दिखाने वाला शीशा) ले आया और इसकी सहायता से उसने मोहर को पढ़ा। लिखा था—'मामूली रोशनी में और बिना मैंग्नीफाइंग ग्लास के जब तुम अक्षर पढ़ सको तो पत्नी को अस्पताल ले आना।'
एक पत्रिका नए रूप में निकलने लगी। दो लेखको में वार्तालाप—
'यह नया रूप भी पहले जैसा ही है।'
'नहीं, नजरिया बदल कर प्रोग्रेसिव हो गया है।'
'कैसे?'
'पहले त्वचा की सुरक्षा पर लेख छपते थे, अब उसमें मुंहासे दूर करने की विधियां बताई जाती हैं।'
पहले एक बांझ औरत साधू—महात्मा के पास पूछने जाती थी कि उसको बच्चा कब होगा। आजकल वह डॉक्टर के पास जाती है।
बूढ़े दादा को जिन्हें अखबार पढ़ने का शौक नहीं था, पता चला कि उनका पोता हवा में उड़ कर सितारों पर जाने वाला बनना चाहता है।
उसे बुलाकर डांटते हुए बोले—'क्या बकवास है! हमारे परिवार में आज तक किसी ने सरकस में काम नहीं किया है।'
क्लब में ताश का खेल हो रहा था। एक खिलाड़ी ने अपनी घड़ी देखी और पत्ते फेंक दिए।
'क्या हुआ?' दोस्तों ने पूछा।
'मैं चला। आज ठीक आठ बजे पंडित रामलाल का टेलीविजन पर सितारवादन का प्रोग्राम है, मुझे ठीक आठ बजे पहुचना है।'
'हमें नहीं मालूम था कि तुम संगीत के इतने बड़े प्रेमी हो।'
'मैँ संगीत का नहीं, पंडित रामलाल की पत्नी का प्रेमी हूं।
मुझे ठीक आठ बजे पंडित रामलाल के घर पहुंचना है।'
एक दोस्त (दूसरे से)—'यार, मैं अगर गधा होता तो क्या तुम भी दोस्ती की खातिर गधे बन जाते?'
दूसरा दोस्त—'गधा तो नहीं बनता, पर दोस्ती की खातिर तुम्हें घास जरूर खिलाता।'
'क्या बात है शान्ता बेन, खाना नहीं पका रहीं आज?'
'मुझसे बात मत कीजिए, डॉक्टर ने मुझे खाना बनाने को मना कर दिया है।'
'क्यों? तबीयत ठीक नहीं क्या आपकी?'
'मेरी तबीयत को क्या होना था? जरा 'उनकी 'तबीयत...'
'अ.....च्छा। पर आपको खाना बनाने में क्या अड़चन है?'
'अड़चन क्या जी! डॉक्टर कहता है, कुछ रोज इन्हें मेरे हाथ का खाना न खिलाया जाए।'
युवक ने रेस्तराँ में भरपेट खाना खाया। वेटर बिल लेकर आया तो वह खेदपूर्ण स्वर में बोला—'मुझे अफसोस है कि मेरे पास बिल चुकाने के लिए पैसे नहीं हैँ।'
वेटर मालिक को बुला लाया।
'कोई बात नहीं साहब।' मालिक महानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला—'आप दीवार पर अपना नाम और बिल की रकम लिख जाइए। जब आपके पास पैसे हों, बिल चुका जाइएगा।'
'लेकिन' यूं सस्ता छूटते