HOME BEAUTY CLINIC (Hindi)
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Description

Women today have become extremely conscious of their looks, appearance and presentation as these attributes impart them a definite edge in bettering their career opportunities, success in higher educational admissions and in raising social status. While those lucky to be born beautiful can enhance their appeal, others can equip themselves with the vast treasure of knowledge this book succinctly provides. This book covers all aspects of beauty tips, from head to toe, a woman of any class or colour yearns for ways that are good for facial, hair & skin care, adolescent problems, massaging techniques, preparing beauty aids at home, non-repetitive diet, shapely limbs through physical exercises etc. Ideas contained in the book are equally useful for men as well!


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 13 juillet 2011
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350573594
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

लेखिका
परवेश हांडा
 
 
 




प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814488-2-3
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


 
प्रकासकीय
 
श्रृं ग़र-कला उतनी ही प्राचीन है, जितनी मानव-सभ्यता । सृष्टि के आरम्भ से जबसे नारी ने अपने अस्तित्व, स्वरूप व सौन्दर्य के महत्त्व को पहचाना है, पुरुष को मोहने के लिए विभिन्न अलंकरणों का प्रयोग करती आयी है । सौन्दर्य के मापदण्ड, सौन्दर्य-प्रसाधन व वस्त्रऱभूषण देशकाल और सभ्यता के अनुसार बदलते रहे हैं । प्राचीन समय में गोरा रंग, ऊँचा कद व तीखे नयन-नक्श सौन्दर्य के प्रतीक माने जाते थे । आज सुन्दरता का अर्थ है- सम्पूर्ण आकर्षक व्यक्तित्व जिसमें शारीरिक सुन्दरता के अलावा चाल-ढाल, वेषभूषा उठने-बैठने का सलीका भी शामिल है । पहले महिलाएँ स्वयं इस कला में निपुण होती थीं और सौन्दर्य-निखार के लिए घरेलू प्रसाधन प्रयोग में लाती थीं । आज उनका स्थान ब्यूटीशियन व रंग-बिरंगे कास्मेटिक्स ने ले लिया है । लेकिन इनका उद्देश्य एक ही रहा है, महिलाओं के यौवन व सौन्दर्य को चिरस्थायी बनाये रखना ।
पिछले कुछ दशकों में महिलाओं में सौन्दर्य के प्रति जागरूकता तेजी से बढी है, क्योंकि उनका सामाजिक दायरा व उत्तरदायित्व पहले की अपेक्षा विस्तृत हो गया है। प्रतिस्पर्धा के इस युग में अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाये रखना न केवल उनका शौक बल्कि एक अनिवार्यता बन गयी है । हर महिला अनिन्द्द सुन्दरी नहीं होती, लेकिन कुछ न कुछ प्राकृतिक विशेषता अथवा विशिष्टता हर स्त्री में अवश्य होती है । उन्हें उभार कर व्यक्तित्व को आकर्षण का केन्द्र बनाना एवं सौन्दर्य को देर तक कायम रखना ही सौन्दर्य-कला कहलाती है । लेकिन कितनी महिलाएँ इस कला में निपुण होती हैं । ढेर सरि कास्मेटिक्स अथवा कीमती वस्त्र भी आपके व्यक्तित्व को उभारने में असमर्थ रहेंगे, यदि आपका शरीर स्वस्थ तथा सुडौल नहीं है अथवा आपकी त्वचा कोमल व दाग रहित नहीं है । सौन्दर्य के इन आधारभूत तत्वों को पाने अथवा कायम रखने के लिए आपको स्वयं प्रयत्न करना पड़ेगऱ ।
बड़े शहरों में इसके लिए ब्यूटी क्लीनिक तथा हैल्थ क्लव होते हैं और अल्पकालीन कोर्स भी उपलब्ध कराये जाते हैं । लेकिन कितनी महिलाएँ इनका लाभ उठा पाती हैं ? औसत भारतीय महिला के लिए आज भी अच्छे ब्यूटी—क्लीनिक्स एक विलासिता हैं, जहाँ विवाह, पार्टी आदि विशेष अवसरों पर श्रृंगार के लिए तो जाया जा सकता है, नियमित रूप से नहीं । बहुत समय से ऐसी पुस्तक की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी, जो महिलाओं को घर बैठे ही सौन्दर्य का प्रशिक्षण दे सके । सौन्दर्य-कला के सभी पहलुओं जैसे फेशियल, मसाज, मेकअप, पैडोक्योर, मैनीक्योर, केश-संरक्षण आदि में निपुण बनाकर उनकी सौन्दर्य-समस्याओं का समाधान कर सके । सौन्दर्य की देखभाल को उनकी दैनिक दिनचर्या का एक अंग बना सके। यूँ तो इस विषय पर ढेर सारी सामग्री उपलब्ध है और अब तक ढेरों पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं, लेकिन अधिकांश अच्छी पुस्तकें या तो अँग्रेजी में हैं या विदेशी भाषाओं से अनुवादित हैं, जो भारतीय परिवेश में साधारपा पढ़ी-लिखी महिला के लिए न ती उपयोगी सिद्ध होती हैं न ही व्यावहारिक । इस पुस्तक में इन्हीं दोनों कमियों को दूर कर मौलिक एवं व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया गया है । पुस्तक की लेखिका श्रीमती परदेशि हांडा का परिचय देने को आवश्यकता नहीं है । वे एक प्रशिक्षित एवं अनुभवी ब्यूटीशियन तो हैं ही, लेखिका के रूप में भी ख्याति अर्जित कर चुकी हैं । इस विषय का उन्हें गहन अनुभव भी है और अध्ययन भी । पुस्तक को हर सम्भव व्यावहारिक व हर वर्ग की महिला के लिए उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है । सभी सौन्दर्य-क्रियाएँ, जैसै- फेशियल, मालिश, व्यायाम, मेकअप, केश-सज्जा आदि को क्रमवार चित्र सहित व सरल भाषा में पाठिकाओं तक पहुँचाने का प्रयत्न किया गया है ।
पुस्तक के अन्त में सौन्दर्य-प्रसाधनों को घर पर ही तैयार करने की विधि भी दी गयी है, जिससे इस पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इनसे धन को बचत तो होती ही है, सौन्दर्य-प्रसाधनों से होने वाली एलर्जी से भी आप बच जाती हैं ।
आशा है, पुस्तक हमारी पाठिकाओं के लिए उपयोगी व संग्रहणीय सिद्ध होगी ।
—प्रकाशक


 
 

लेखिका परिचय
परवेश हांडा एक प्रशिक्षित एवं सुप्रसिद्ध सौन्दर्य-विशेषज्ञा हैं और कईं वर्षों से अपना सौन्दर्य-संस्थान चला रही हैं । घरेलू विधि द्वारा जड़ी बूटियों से तैयार सौन्दर्य-प्रसाधनों में उन्हें विशेष दक्षता प्राप्त हैं और इस दिशा; में वे काफी शोध कार्य कर चुकी हैं । एक कुशल सौन्दर्य-विशेषज्ञा होने के साथ-साथ वे सक्षम लेखिका भी हैं । हिन्दी, पंजाबी व अँग्रेजी भाषा में सौन्दर्य-निखार पर उनकी पाँच सौ से भी अधिक रचनाएँ देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिक्राओं जैसे, नवभास्त टाइम्स, हिन्दुस्तान, द्रीब्यून, इण्डियन एक्सप्रेस, नेशनल हेराल्ड, सूर्या इण्डिया, मनोरमा, गृहशोभा आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं। वे कई पत्र-पत्रिकाओं की सौन्दर्य स्तम्भ लेखिका भी हैं।
 
लेखकीय
आ ज भी नारी-श्रृंगार उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना प्राचीन समय में था । अन्तर यह है कि श्रृंगार वही है, आयाम बदल गये हैं । प्राचीन काल में नारी-सौन्दर्य की कसौटी कुछ दूसरी थी । उसकी सुन्दरता को गोरे रंरा, पतली कमर और तीखे नयन-नक्शों द्वारा आँका जाता था। आज के वैज्ञानिक युग में सौन्दर्य- सम्बन्धी पुरानी मान्यता में बदलाव आ गया है । अब केबल सुन्दर चेहरा ही सौन्दर्य नहीं माना जाता, महज सुन्दर वस्त्र पहन लेना या चेहरे पर श्रृंगार-प्रसाधन पोत लेना सौन्दर्य नहीं। सौन्दर्य का अर्थ है- आकर्षक व्यक्तित्व । सुन्दर दिखने की अपनी इच्छा को चरितार्थ करने के लिए जरूरी है कि आप सौन्दर्य-प्रसाधनों का सही इस्तेमाल करना जानें । शारीरिक-सुन्दरत्ता के लिए कैसे-कैसे व्यायाम करें, कैसे उठें और बैठें-इन सभी बातों की समझ होनी आवश्यक है ।
पिछले दो दशकों में महिलाओं, विशेषकर नौकरीपेशा महिलाओं में सौन्दर्य के प्रति जागरूकता तीव्रता से बढ़ी है। सौन्दर्य-प्रसाधनों की ब्रिकी के तेजी से यहाँ एबं आये दिन खुलते ब्यूटी…क्लीनिकों की भरमार इसका सजीव प्रमाण है। लेकिन कितनी महिलाएँ सौन्दर्य के आधारभूत तत्वों जैसै अच्छा स्वास्थ्य, शारीरिक-सौष्ठव, स्वस्थ व सुकोमल त्वचा, घने सुन्दर केश आदि के प्रति सचेत रहती हैं ? कितनी महिलाओं को सौन्दर्य-प्रसाधनों व बस्त्रभूषणौं के सही चयन और मेकअप की सही तकनीक का ज्ञान होता है ? सौन्दर्य केवल ऊपरी सजधज नहीं, बल्कि प्रकृति प्रदत्त विशेषताओं को सहेजकर रखना और प्राकृतिक दोष छिपा कर व्यक्तित्व को निखारना है । अकसर देखा जाता है कि सही जानकारी के अभाव में बेतुके मेकअप और बेमेल पोशाकों से सुन्दर महिलाएँ भी अपना सौन्दर्य बिगाड़ लेती हैं ।
मैं वहुत समय से यह अनुभव कर रही थी कि मध्यवर्गीय उन महिलाओं को, जिन्हें प्रशिक्षित ब्यूटीशियन की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, ऐसी पुस्तक उपलब्ध करायी जाये, जो इन्हें घर बैठे ही प्रशिक्षित ब्यूटीशियन सा प्रशिक्षण दे सके । सौन्दर्य के सभी पहलुओं फेशियल, मसाज, मेकअप, विभिन्न प्रकार के व्यायाम द्वारा शारीरिक सौन्दर्य निखारने में मददगार सिद्ध को सके, साथ ही उनकी सौन्दर्य-समस्याओं का निदान कर रुके । आज जब कि महिलाएँ नौकरी-व्यवसाय आदि की ओर भी कदम बढ़ा रही हैं, आकर्षक व्यक्तित्व का महत्त्व और भी बढ़ जाता है । कार्यशील महिला अपूर्व सुन्दरी भले ही न हो, लेकिन उसका व्यवित्तत्व सौम्य, वेशभूपा आकर्षक और मेकअप सुरुचिपूर्ण होना चाहिए । व्यक्तित्व का आकर्षण न केबल आपको प्रतिष्ठित बनाता है, बल्कि आप में आत्म-सम्मान की भावना भर देता है । इन्हीं मुद्दों को ध्यान में रख कर मैंने इस पुस्तक को रचना की है और हर सम्भव प्रैक्टिकल एवं हर वर्ग की महिला के लिए उपयोगी बनावे का प्रयास किया है । इस प्रयास में मैं कहँ तक सफल इसका निर्णय आपके हाथ में है ।
आपकी हर सौन्दर्य समस्या का स्वागत है ।
—परवेश हांडा


विषय-सूची
भाग- 1 चेहरे का सौन्दर्य

परिचय
1. चेहरे की त्वचा
2. फेशियल क्रिया
3. चेहरे की झुर्रियाँ
4. चेहरे के दाग
5. चेहरे पर अवांछित
6. ब्लीचिंग कैसे करें
7. किशोरियों की समस्याएँ
8. नेत्र-सौन्दर्य कैसे बढ़ाये?
भाग- 2 चेहरे का मेकअप

9. श्रृंगार-कला
10. श्रृंगार का आधार: फाउण्डेशन
11. क्रीम का सेही प्रयोग
12. पाउडर कैसे लगायें
13. रूज कैसे लगायें
14. होठों की शोभाः लिपस्टिक
15. नेत्र-श्रृंगार
16. माथे की शोभा-बिन्दिया
17. विवाह से पहले सौन्दर्य-निखार
18. नववधू का श्रृंगार
19. साँवले चेहरे पर श्रृंगार
20. सफर में सौन्दर्य की देखभाल
भाग- 3 केश सौन्दर्य

21. बालों की देखभाल
22. शैम्पू का चुनाव
23. कैश-सज्जा
24. हेयर डाई
भाग- 4 शारीरिक सौन्दर्य

25. ग्रीवा-सौन्दर्य
26. दोहरी ठोड़ी
27. वक्ष-सौन्दर्य
28. सुन्दर व सुडौल पीठ
29. कमर की सुन्दरता
30. सुडौल कल्हे व जाँघे
31. सुडौल बाँहे
32. हाथों का सोन्दर्य
33. सुडौल टाँगें
34. स्नान द्वारा त्वचा की सफाई
35. सन्तुलित आहार द्वारा शारीरिक-सौन्दर्य
36. शारीरिक-रुथूलता
भाग- 5 घरेलु सौन्दर्य-प्रसाधन

37. फलों व सब्जियों द्वारा सौन्दर्य
38. घरेलू सौन्दर्य-प्रसाधन


ना री और श्रृंगार एक सिक्के के दो पहलू है । सृष्टि के आरम्भ में जब से नारी का जन्म हुआ, तभी से उसे सौन्दर्य-चेतना का भाव विरासत में मिलर है और वह अपने दैहिक-सौन्दर्य के प्रति जागरूक देखी गयी है । कवि कलिदास ने लिखा है- “ स्त्रीणां प्रियालोक फलो हि वेश" अर्थात स्त्रियों का सुन्दर वेश वही है, जो प्रिय के मन को भाये । श्रृंगार का स्थायी भाव ‘ रति' है। ‘ रति ' प्रेम, प्रीति तथा मिलन की उत्सुकता का नाम है । पुरुष के प्रेम को जीतने के लिए नारी ने विभिन्न युगों में विविध श्रृंगारों द्वारा अपने दैहिक -सौन्दर्य को बढ़ाया है । प्राचीन समय में सोलह श्रृंगार का प्रचलन था, जिनमें मुख्य थे-माँग भरना, सिन्दूर धारण करना,काजल लगाना, हलदी लगाना स्नान या जल

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