Mool Mantra Vichar
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Description

Devoted to 550 years of Sahib Shri Guru Nanak Dev Ji. This book "Mool Mantra Idea" composed by Jasmer Singh Hothi is a commendable effort. Sikh associates will benefit from reading this book. - Butter Singh (Shiromani Mint Shaheed Bhai Mani Singh Ji Shri Amritsar) Book "Mool Mantra Idea" I am considering the basic mantra of Gurmati. Jasmer Singh Hothi has successfully tried to impart his "original intent" with impartiality. Hajur of Wahiguru begs that he bless the Hothi family for generations in the field of "cult service". God bless! - Ranjit Singh Rana (Director, Sahib Shabd Yajna International Editor, Monthly Letter "Sahib")

Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 19 juin 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789389807196
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0132€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

मूल मंत्र विचार
 

 
eISBN: 978-93-8980-719-6
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2019
MOOL MANTRA VICHAR
By - S. Jasmer Singh Hothi
Translated By : Dr. Jasvinder Kaur Bindra
 
 
समर्पण
निराकार प्रभु के नूरानी प्रकाश अकाल पुरख का संपूर्ण निर्मल प्रतिबिंब धन्य धन्य श्री गुरु नानक देव साहिब जी महाराज जी के 550वें प्रकाश पुरब व सतिगुरु जी के पवित्र चरणों में अत्यन्त श्रद्धा व सम्मान से असंख्य बार नमस्कार सहित भेंट।
हमरे पिता ठाकुर प्रभ सुआमी हरि देहु मती जसु करा ।। तुम्रै संगि लगे से उधरे जि संगि कासट लोह तरा ।।
(अंग 799)
 
 
 

ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ।। जपु ।। आदि सचु जुगादि सचु ।। है भी सचु नानक होसी भी सचु ।। 1 ।।
क्रम आशीर्वाद दो शब्द मूल मंत्र विचार शुक्रराना मूल मंत्र ੴ इकओंकार सतिनामु करता पुरखु निरभ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ।। ।। जपु ।। आदि सचु जुगादि सचु ।। है भी सचु नानक होसी भी सचु ।। 1 ।। ੴ सतिगुर प्रसादि ।। सहायक ग्रंथ, पुस्तक-सूची व अन्य माध्यम
 
 
लेखक की पंजाबी में प्रकाशित अन्य पुस्तकें:- पंचा के बसि रे दसम दुआरा अगम अपारा संतन की महिमा सत वार सात वार (हिन्दी)
1. आशीर्वाद
साहिब श्री गुरु नानक देव जी के 550 वर्षों के आगमन पर्व को समर्पित स. जसमेर सिंह होठी द्वारा रचित यह पुस्तक “मूल मंत्र विचार” एक सराहनीय प्रयास है। विश्व के किसी भी कोने में बैठा गुरसिख इस गुरुपर्व को अत्यन्त श्रद्धा की भावना और उत्साह से मनाने की योजनाएं बना रहा है। देश विदेशों में गुरसिखी के प्रचार के लिए निर्मित किए गए गुरुद्वारों के प्रबंधक भाई इस पर्व को शानो-शौकत से मनाने की तैयारी में लगे हुए हैं। पिछले समय में मनाई गई शताब्दियों और अर्ध शताब्दियों के अंतर्गत लगता है कि अखंड पाठ करवाना, लंगर लगाना और नगर कीर्तन इत्यादि करना ही गुरुपर्व मनाने का लक्ष्य रहा। वास्तव में गुरुपर्व मनाने का ना यह तरीका है और ना ही जरूरत। आवश्यकता है, गुरबाणी में बताए गए गुरु नानक साहिब के सिद्धांत को समझ कर उसे अमल में लाना। इसके लिए जरूरी है कि हम यह समझें कि गुरु नानक साहिब का सिद्धांत क्या है? गुरु नानक देव जी का सिद्धांत जातिवाद का सिद्धांत नहीं हैं। उनका सिद्धांत संपूर्ण मानवता को परमात्मा के निकट लाना है। परमात्मा क्या है? विश्व के लोगों को समझाना, उसकी सलाहियत करना, उसके मार्ग पर चल कर गुरु साहिब के बारे में बताना।
गुरु नानक देव जी पाखंड के पुजारी नहीं। सदियों से चल रही परंपराओं से गुरु साहिब कोसों दूर रहे। पवित्र बाणी में गुरु साहिब पाखंड में फंसे हुए लोगों को उससे निकालने के लिए समझाते व यत्न करते हैं। सैद्धांतिक तौर पर जनेऊ पहनाने के लिए आए ब्राह्मण से गुरु जी पूछते हैं, “जनेऊ क्या है! इसे क्यों धारण किया जाए? ब्राह्मण ने कहा, नानक! यह जनेऊ तुम्हारी रक्षा करेगा।”
गुरु साहिब ब्राह्मण से प्रश्न करते हैं कि “मैं इन्सान हूं। कच्चे धागे का यह जनेऊ पहनने से टूट जाएगा, फिर मेरी रक्षा कौन करेगा।” ब्राह्मण जवाब देता है, नानक! फिर नया जनेऊ पहन लेना। गुरु नानक ने कहा, “ऐसा जनेऊ टूट जाने पर फिर पहनना पड़े, यदि आप के पास कोई ऐसा जनेऊ हो, जिसे मैं जानता हूं, यदि वह आपके पास है तो मुझे वही पहनने के लिए दो।”
दयिआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढ़ी सतु वटु ।। ऐहु जने जीअ का हयी त पादे घतु ।। न ऐहु तुटै न मलु लगै ना ऐहु जलै न जायि ।। धन्नु सु माणस नानका जो गलि चले पायि ।। च कड़ि मुलि अणायिआ बहि च कै पायिआ ।। सिखा कंनि चड़ायीआ गुरु ब्राहमणु थिआ ।। औहु मुआ औहु झड़ि पयिआ वेतगा गयिआ ।। 1 ।।
(अंग 471)
स्कूल में पढ़ने जाने की साखी सभी जानते हैं। गुरु नानक साहिब के कहे हुए शब्दों को समझना, याद रखना और अपने जीवन में लागू करना, यही सब से बड़ी बात है। गुरु नानक के कहे हुए शब्द:
नीचा अंदरि नीच जाति नीची हू अति नीचु ।। नानकु तिन कै संगि साथि वडिआ सि किआ रीस ।। जिथै नीच समालीअनि तिथै नदरि तेरी बखसीस ।।
(अंग 15)
विदिआ वीचारी तां पर पकारी ।। जां पंच रासी तां तीरथ वासी ।। 1 ।।
(अंग 356)
गुर परसादी विदिआ वीचारै पड़ि पड़ि पावै मानु ।।
(अंग 1329)
क्या हमने इन सभी बातों को समझ लिया है। अभी तक तो हम मूल मंत्र के आगे लिखे हुए १ के अंक को भी समझ नहीं पाए। संसार के सभी धर्म बात तो उसी १ की बात करते हैं परन्तु झगड़े भी उसी एक 1 के नाम पर ही होते हैं? मनुष्यता का कत्ल क्यों करते हैं? यदि उत्पत्ति, पालन और करने वाला सति है, नाम है और कामरूपी प्रपंच रचने वाला है। सृष्टि का करता है, पुरख है (प-रख) की रक्षा करने वाला है निरभ है, निरवैर है, समय की बंदिश से परे है और प्रत्येक कण में मूर्तिमान हैं, वह किसी भी योनि में नहीं आता, भाव उस का कोई माता-पिता नहीं। वह स्वयं ही प्रकाश पुंज है। गुरु नानक साहिब कहते हैं :
आपीनै आपु साजिऔ आपीनै रचिऔ ना ।।
(अंग 463)
उसी एक का प्रकाश सभी में समाया है:
सभ महि जोति जोति है सोयि ।।
(अंग 13)
वह गुरु बड़ा है और प्रसादि किरपा स्वरूप है।
गुरु साहिब ने हमें नाम का जाप करने का आदेश दिया है। जो संसार की रचना से पहले भी था, जुगों-जुगों तक सत्य रहा है, अभी भी सत्य है। गुरु नानक साहिब ने दावे से कहा है कि आने वाले समय में भी सत्य होगा।
जसमेर सिंह होठी ने इस पुस्तक “मूल मंत्र विचार” में अत्यन्त विस्तार से मूल मंत्र की व्याख्या की है। सिख संगतों को इस पुस्तक को पढ़ने से लाभ होगा। मैं होठी जी की इस पुस्तक को खुशामदीद कहते हुए बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि वह और भी गुरमति की पुस्तकें लिख कर संगत से आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
गुरु पंथ का दास मक्खन सिंह शिरोमणि टकसाल शहीद भाई मनी सिंह जी गली सत्तो वाली, कटरा करम सिंह, श्री अमृतसर।
2. दो शब्द
धन्न “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज” जी के पावन पवित्र बचन हैं:-
गुर परसादी विदिआ वीचारै पड़ि पड़ि पावै मानु ।।
(अंग 1329)
गुरु साहिब जी के अत्यन्त प्यार के नाम रसिए, मीठी बानी वाले, सहजता में रहने वाले और नम्रता से भरपूर अति आदर वाले बड़े भाई स. जसमेर सिंह होठी पर ‘धन्न श्री हरिक्रिशन साहिब जी’ ने जैसे एक छज्जू नामक सेवक पर बख्शिश कर, उससे ‘गीता’ के अर्थ करवाए, इसी प्रकार गुरु हरिक्रिशन साहिब जी ने होठी जी पर बख्शिश की। इसी बख्शिश के कारण उनके द्वारा पांचवीं पुस्तक ‘मूल मंत्र विचार’ हमारे सामने आई। होठी जी की सारी पुस्तकें ही खोज भरपूर हैं। सभी पुस्तकों को उन्होंने अत्यन्त परिश्रम से लिखा। प्रस्तुत पुस्तक ‘धन्न श्री गुरु नानक साहिब जी’ के 550वें प्रकाश पर्व को समर्पित हैं और ‘गुरु नानक साहिब’ द्वारा उच्चारित किए गए मूल मंत्र पर रची गई है। यह एक विलक्षण बात है।
‘होठी जी’ की यह विशेषता है कि गुरबाणी, गुरमति और गुरु इतिहास के बिना किसी और तरफ भटकते नहीं, वह गुरबाणी पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं। पुस्तक “मूल मंत्र विचार” में आपने बीज मंत्र, महा मंत्र, मूल मंत्र और गुर मंत्र पर अत्यन्त विस्तार से, गुरमति ढ़ंग से विचार किया।
मूल मंत्र के बारे में सिखों में अलग अलग विचार हैं परन्तु होठी जी ने दरबार साहिब, श्री अमृतसर, श्री अकाल तख्त साहिब पर गुरु साहिबानों और सिखों के शास्त्रों पर जो लिखा गया है, उस बारे में अत्यन्त खोज की और बताया कि ‘नानक होसी भी सचु’ तक लिखा गया है। आज तक मूल मंत्र संबंधी विस्तृत व्याख्या और बड़े आकार की पुस्तक पढ़ने के लिए नहीं मिलती। मैं आशा करता हूं कि पाठक भी इस पुस्तक को पढ़कर अपना आशीर्वाद अवश्य होठी जी को देंगे। विशाल महल बनाना हो तो मजबूत नींव की आवश्यकता होती है। गुरु नानक साहिब जी ने यह मूल मंत्र की मजबूत नींव रखी है, जिस की सारे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में व्याख्या की गई है। जैसे होठी जी की पुस्तक ‘सात वार’ पढ़ कर बहुत सारे लोगों के वारों के प्रति भम्र भुलावे दूर हुए थे। इसी प्रकार मुझे आशा है कि होठी जी की इस पुस्तक को पढ़ कर मूल मंत्र के बारे में भी भुलावे दूर हो जाएंगे।
विदेशों में अपना काम काज करते हुए गृहस्थी की जिम्मेवारियों को निभाते हुए, इतनी बारीकी में जा कर, खोज करके पुस्तकों की रचना करना अत्यन्त कठिन हैं, परन्तु होठी जी पर कृपा करके गुरु साहिब जी ने स्वयं उनसे यह सेवा ली है। प्यारे भाई होठी जी की सुपत्नी बीबी हरभजन कौर का भी इसमें भरपूर योगदान है जो हर समय उन्हें पुस्तक लिखने में सहायक होती है।
मेरी गुरु साहिब के आगे यही विनती है कि स. जसमेर सिंह होठी की यह पुस्तक पढ़ कर हम सभी की गुरु जी के प्रति श्रद्धा और भी परिपक्व हो और हम ‘धन्न धन्न श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के उपदेशों से जुड़ कर अपना जीवन सफल कर पाएं।
हार्दिक बधाई सहित।
ज्ञानी महिन्दर सिंह ‘हमदर्द’ (कथावाचक) हॅड प्रचारक गुरु लाधो रे सोसाइटी, यू. के. मई 2019
3. मूल मंत्र विचार
“साहिब शब्द यज्ञ” संस्था की ओर से 2008 में होले महल्ले के समय श्री अनंदपुर साहिब में पुस्तक “जा तू साहिबु” बड़ी संख्या में वितरण की गई थी। उपरांत संगत की मांग अनुसार, अलग अलग शहरों, कस्बों और गांवों में भी यह पुस्तक पहुंचाई गई। लाखों की तादाद में एक उच्च स्तरीय पुस्तक की योजना बनाना, छापना व वितरित करना “साहिब शब्द यज्ञ” के संचालकों का संयुक्त प्रयास था। जिसमें स. जसमेर सिंह होठी का योगदान प्रशंसनीय था। गुरु द्वारा बसाई नगरी श्री अमृतसर साहिब के एक गुरसिख नौजवान स. हरपाल सिंह ने ‘जा तू साहिबु’ पढ़ कर ‘साहिब शब्द यज्ञ’ से विनती की कि ‘मूल मंत्र’ के बारे में इसी अंदाज में एक पुस्तक तैयार की जाए। बेशक हम सभी अपने अपने स्थान में व्यस्त थे, फिर भी भाई हरपाल सिंह बार-बार अपनी इस ताकीद को दुहराते रहे। उस की सत्य भावना से प्रेरित हो कर मैंने सरदार जसमेर सिंह होठी जी को विनती की कि ‘मूल मंत्र’ संबंधी सर्वव्यापक वैचारिक प्रवाह की एक पुस्तक श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व तक तैयार करने की कृपा करे। अपनी व्यस्तता के बावजूद स. जसमेर सिंह होठी जी ने हमारी विनती को स्वीकार कर लिया। वर्षों की लगन भरी मेहनत के बाद पुस्तक “मूल मंत्र विचार” आपके हाथों में हैं।
प्रस्तुत पुस्तक “मूल मंत्र विचार” से पहले भी स. जसमेर सिंह होठी द्वारा रचित चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन की पहली पुस्तक “पंचा के बसि रे” में पांच विकारों और पांच तत्वों के बारे में खोज भरपूर जानकारी दी गई है। दूसरी पुस्तक “दसम दुआरा अगम अपारा” मनुष्य शरीर के बाहरी दिखाई देते नौ दरवाजों को बंद कर, दसवें दुआर तक पहुंचने के अध्यात्मिक विधि विधान का अनुभवी ज्ञान पेश करती है। उनकी तीसरी पुस्तक “संत की महिमा” संत बाबा हरबंस सिंह डुमेली वालों के जीवन की झलक को श्रद्धापूर्वक उल्लेख करती है। उन की चौथी पुस्तक “सात वार” सप्ताह के सात वारों, थित्तियों, वादी सुदी और तिथियों त्यौहारों के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाली विलक्षण रचना है। इन पुस्तकों के अलावा मासिक पत्रिका ‘साहिब’ और देश-विदेश के अन्य अनेक पत्रिकाओं में उनके गाहे बगाहे दर्जनों लेख गुर इतिहास और गुरमति फलसफे के बारे में लिखे मिलते हैं। इसी प्रकार होठी जी ने धार्मिक और आध्यात्मिक दायरे में रहते हुए, मानव जीवन के अलग अलग पहलुओं को बयान करती खोज पूर्ण रचनाओं को लिख कर गुरमति साहित्य की विलक्षणता के प्रति शुद्ध और पवित्र निष्ठा और परिपक्व प्रतिबद्धता का सबूत दिया। पांचवीं पुस्तक ‘मूल मंत्र विचार’ उनकी निरंतर लगन, निष्काम, प्रतिबद्धता और सुहृदय सोच का स्वाभाविक प्रदर्शन है।
पुस्तक “मूल मंत्र विचार” में गुरमति के मूल मंत्र पर विचार करते हुए स. जसमेर सिंह होठी ने निष्पक्षता से उसके “मूल मंतव्य” को प्रचार करने की सफल कोशिश की है। वर्तमान समय में अलग अलग सिख संस्थाओं और संप्रदायों में छोटी छोटी बात पर बड़े बड़े विवाद उठने लगे हैं। आज

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