201 Tips for Gas and Acidity
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Description

Gas, acidity, heartburn, constipation and pain in the abdomen are some of the very common complaints of general population. Everyone suffers from one of these symptoms at least once a year. People want to know the details of the cause, symptoms and non-drug solutions of the problems. This book gives all the details of these medical problems in simple language. The book also tells about the common medical drugs used by most of the common people, available widely in the medical shops. These "over the counter" drugs and their groups, uses and indications are also a part of the book. The medical tests performed by the gastroenterologists and their implications are also explained by the author.This book is for common people, but will be also good for the medical personnel to refresh their memory about the common problems for the digestive tract. This book will the best book to read if you need to understand the digestive system. Best book to keep in your collection in the bookself.

Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 10 septembre 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352962235
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0132€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

गैस एवं एसिडिटी के लिये 201 टिप्स
(अल्सर, कब्ज, अपच एवं दस्त के लिये भी)
 

 
eISBN: 978-93-5296-223-5
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712100
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2018
201 Tips for Gas and Acidity
By - Dr. Bimal Chhajer
भूमिका
हृदय रोगियों का विशेष रूप से इलाज करते हुए मैं पूरे मानव शरीर का मुआयना करता हूं। जब मुझे किसी हृदय रोगी में थायराइड की बीमारी नज़र आती है तो उसके भी इलाज का प्रयास करता हूं। जब मेरे पास कोई ऐसा रोगी आता है जो शुगर की बीमारी से त्रस्त है तो मैं उसे विशेषज्ञ चिकित्सक के पास नहीं भेजता बल्कि उसके ब्लड शुगर का लेवल नियंत्रित करने की कोशिश करता हूं। हृदय रोगियों में अनिद्रा, कमर में दर्द, स्पांडीलाइटिस, वजन का बढ़ना अथवा कम होना, प्रोस्टेट, एलर्जी, स्नायु दर्द, घुटनों में दर्द अथवा छाती में इनफेक्शन की भी शिकायत होती है। एक एलोपैथिक चिकित्सक होने के नाते लगता है कि मुझे अपनी ओर से पूरे प्रयास करने चाहिए जिससे रोगी को दूसरे सम्बन्धित रोगों से मुक्ति मिल जाए।
अपने मरीजों में मैंने पेट और आंत से संबंधित शिकायतें आमतौर पर पायी हैं। यह कई कारणों से संभव है। गैस, बेलचिंग, फ्लेट्स, फाउल स्मेलिंग फ्लेट्स, फूला हुआ पेट, अपच और कब्ज से भी यह सब होता है। कुछ रोगियों ने डायरिया, कब्ज से संबंधित डायरिया, सुबह के समय बार-बार मल त्याग करने की शिकायत की। इन 13 शिकायतों में से अधिकांश के लिए मैंने रोगियों के साथ संपर्क भी किया। कुछ रोगियों में तो ये सभी शिकायतें पायी गयीं। मैंने देश के चारों भागों में इलाज के लिए भ्रमण किया है। देश-भर में हृदय रोगियों का इलाज करते हुए मुझे इस तरह की अधिक शिकायत पूर्वी भाग में मिलीं।
कुछ आम शिकायतें इस प्रकार हैं; गैस अथवा हवा निकलना डकार अथवा खट्टी हवा निकलना आंत्रवायु गंधयुक्त डकार अफारा अपच पेट में दर्द वमन अथवा उल्टी होना भूख न लगना कब्ज डायरिया कब्ज से संबंधित डायरिया बार-बार शौच जाने के बावजूद पूरा मलत्याग नहीं होना
इन सभी समस्याओं की जड़ में हमारा गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल सिस्टम है जिसमें विशेषरूप से ओसोफेगस, पेट, आंत (छोटी और बड़ी), लीवर और पाचन ग्रंथी है।
चिकित्सीय आधार पर जब आप किसी डाक्टर अथवा विशेषज्ञ से इस बारे में बात करेंगे तो वे इसके कारण को लेकर दुविधा में नज़र आते हैं। उपचार को लेकर आश्वस्त नहीं होते। अधिकांश चिकित्सक इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेते। कुछ चिकित्सक आंख मूंदकर एंटासिड लेने की सलाह देते हैं तो कुछ एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स लेने को कहते हैं जिससे सांकेतिक परेशानियों से राहत मिल सके। यदि आप पेट और आंत से संबंधित विशेषज्ञ के पास जाते हैं तो वे इंडोस्कोपी और कोलोनस्कोपी की सलाह देंगे।
यदि कोई जानकार रोगी इन बिमारियों का चिकित्सीय कारण जानना चाहे तो चिकित्सक इसे एसिडिटी, पेप्टिक अल्सर, डिसेपेंसिया, इंटेस्टाइनल फर्मनटेसन, अफारा, अपच, लीवर की समस्या या कोलाइटिस बताएंगे। यदि इन समस्याओं पर एक चिकित्सक दूसरे से मशविरा करता है तो उपर्युक्त रोगों में से कोई एक हो सकता है। इसके अलावा दूसरी दवाओं के सेवन से होने वाले साइड इफेक्ट के कारण भी इस तरह की समस्या हो सकती है।
सालों की प्रैक्टिस के दौरान मैंने इस तरह की शिकायतों के समाधान के लिए दवाएं लिखीं। इसके साथ ही रोगियों ने कुछ देशी उपचार भी किए। मेरी यह जिज्ञासा शांत नहीं हुई कि क्यों कोलकाता या पश्चिम बंगाल में गैस, अफारा, डकार, पेट दर्द आदि की समस्या आम है। यही स्थिति बांग्लादेश और बिहार में भी दिखी। किसी भी पुस्तक में इसका कोई समाधान नहीं मिला। मैंने कई नेचरोपैथी विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने इन बिमारियों की जड़ में आंत को कारण बताया। किसी के पास इसका सटीक और सही समाधान नहीं मिला। सभी भ्रमित दिखे। यह मूल रूप से चिकित्सा विज्ञान के कारण भी है क्योंकि वहां भी भ्रामक जवाब हैं।
यही कारण है कि जब मेरे प्रकाशक श्री नरेंद्र वर्मा ने गैस और एसिडिटी पर पुस्तक लिखने का निवेदन किया तो मैं सहमत हो गया। इस काम में मैं अपने डायटिशियन सुश्री रिबुरोमस्क नोंकीनरिह और डॉ. रोहिद अमीन के योगदान की सराहना करूंगा जो सॉओल में मेरे साथ लंबे समय से जुड़े हुए हैं।
इस पुस्तक में मर्ज के इलाज के लिए बहुत-सी दवाओं का उल्लेख है पर रोगियों को इन दवाओं का सेवन खुद नहीं करना चाहिए। अपने से स्वयं का इलाज उचित नहीं है। उन्हें उचित चिकित्सकों की निगरानी में उचित दवाओं का सेवन करना चाहिए जिससे उन्हें उसका बेहतर लाभ मिल सके।
इस पुस्तक की शुरुआत में गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल सिस्टम के बारे में कुछ सामान्य जानकारी दी गयी है। उसके बाद मैंने विभिन्न विषयों पर कुछ सामान्य सवालों के जवाब दिए हैं। प्रत्येक सवाल का जवाब यह सोचकर दिया गया है कि पाठक कोई डाक्टर नहीं है। इसके बावजूद अनेक मेडिकल शब्दों और जटिल शब्दों व मुहावरों के प्रयोग से नहीं बच सका क्योंकि मैं खुद एक डाक्टर हूं। यदि आपको इसमें भाषा संबंधी जटिलता कुछ अधिक लगे तो इसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं क्योंकि इसे और अधिक सरल नहीं बना सका।
‒ डॉ. बिमल छाजेड़ एमबीबीएस, एमडी
विषय सूची पाचन तन्त्र के बारे में सामान्य जानकारियां गैस और अफारा एसिडिटी या पेप्टिक अल्सर सीने में जलन या अम्ल का प्रतिवाह गैसट्राइटिस अपचयन आई.बी.एस. (इरीटेबल बॉवल सिंड्रोम)/आमाशय का तनाव संबंधित रोग कब्ज़ / बवासीर (पाइल्स) डायरिया / दस्त / अतिसार उल्टी एवं मतली
1
पाचन तन्त्र के बारे में सामान्य जानकारियां
आंत तन्त्र (G.I.T.) शरीर के अंगों में सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। यह 30 फीट से अधिक लम्बी एक नली होती है जो हमारे मुंह से गुदा द्वार तक जाती है। यह नली जिसे हम ‘आंत तन्त्र’ कहते हैं, हमारे शरीर द्वारा किये जाने वाले विभिन्न क्रिया-कलापों के लिये उत्तरदायी है। यह आंत तन्त्र हमारे स्वास्थ्य के लिये बहुत अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवन भर हमें स्वस्थ बनाये रखने के लिये काम करता है। आंत तन्त्र (गैस्ट्रोइन्टेस्टाइनल सिस्टम) ही हमारे शरीर का वह द्वार है, जिसके द्वारा सभी पोषक तत्त्व, विटामिन, खनिज एवं तरल पदार्थ हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। अगर हमारा आंत तन्त्र काम करना बन्द कर दे या ठीक प्रकार से काम न करें, तो हमारे शरीर में कई प्रकार की गंभीर समस्या एवं रोग पनप सकते हैं, जो हमारे सामान्य जीवन एवं सुखी दिनचर्या को कठिन बना सकते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि कई बार मनुष्य की मृत्यु का आरम्भ उसकी आंतों से ही होता है।

हमारा आंत तन्त्र उन सभी खाद्य पदार्थों एवं तरलों को विखण्डित एवं अवशोषित करता है, जिनकी आवश्यकता हमें जीवित रखने के लिये हमारे शरीर को रहती है। शरीर के विभिन्न अंग पाचन प्रक्रिया में अपना सहयोग देते हैं। इसके लिये हमारे दांत एवं जबड़े भोजन को चबाने का कार्य करते हैं जिससे लीवर को पित्त उत्पन्न करने का प्रोत्साहन मिलता है। लीवर (यकृत) द्वारा पित्त की उत्पत्ति हमारी पाचन प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब हमें भूख लगी होती है उस अन्तराल में पित्त, पित्ताशय में इकट्ठा हो जाता है उसके बाद यह छोटी आंत में चला जाता है।
आंत तन्त्र (G.I.T.) के कितने भाग होते हैं?
मुंह, ग्रासनली (esophagus) , आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलतन्त्र एवं गुदा द्वार हमारे आंत तन्त्र के मुख्य भाग हैं। इनके अतिरिक्त शरीर के कुछ दूसरे अंग भी पाचन प्रक्रिया में सहायता करते हैं मगर तकनीकी स्तर पर इन्हें पाचन तन्त्र का भाग नहीं समझा जाता। ये अंग हैं‒हमारी जीभ (ज़बान) हमारे मुंह के अन्दर स्थित ग्रन्थियां जो राल (Saliva) उत्पन्न करती हैं। इनके अतिरिक्त अग्नाशय (Pancreas) , यकृत (Liver) एवं पित्ताशय (gallbladder)।
पाचन तन्त्र या आंत तन्त्र (G.I.T.) की क्या-क्या क्रियाएं होती हैं?
आंत तन्त्र चार महत्त्वपूर्ण कार्य करता है: खाद्य पदार्थों का भण्डारण करना पाचन तन्त्र के विभिन्न अंगों द्वारा उत्पन्न पाचक रसों (enzymes) को भोजन में मिश्रित करके उन्हें विखण्डित करने के बाद पाचन योग्य बनाना। मुंह के भीतर चबाये जाने के बाद इस मिश्रित भोजन को ग्रासनली आमाशय, ग्रहणी (duodenum), छोटी आंत, बड़ी आंत से होते हुये गुदा द्वार तक ले जाया जाता है। विशेषकर छोटी आंत एवं बाह्य अंगों से रक्त में पोषक तत्त्वों का अवशोषण करवाता है।
पाचन क्रिया का क्या अर्थ है?
पाचन क्रिया उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें हमारे शरीर का पाचन तन्त्र खाद्य पदार्थों को विखण्डित करके शरीर द्वारा अवशोषित किये जाने लायक बना देता है, जिसको हमारा शरीर आवश्यकतानुसार ऊर्जा की प्राप्ति, शरीर के विकास एवं इसकी मरम्मत करने के लिये प्रयोग कर सकें। पाचन क्रिया की अवधि में एक ही समय में दो प्रमुख प्रक्रियायें होती हैं। ये इस प्रकार हैं:

एक बच्चे के दो वर्ष की अवस्था में दूध के केवल 20 दांत होते हैं। ये दांत पांच दांतों के चार-चार के सेट में होते हैं। पांच में से एक काटने वाला दांत, छः माह की अवस्था में निकलता है, फिर अगला दांत नौ माह की अवस्था में निकलता है, इसके पश्चात् बीच का दांत 18 माह की आयु में निकलता है। प्रथम एवं द्वितीय चबाने वाले दांत 12 एवं 24 माह की आयु में आते हैं।
यांत्रिक पाचन (Mechanical Digestion):
पाचन क्रिया की इस अवस्था में भोजन के बड़े-बड़े टुकड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है, जो तत्पश्चात् रासायनिक या द्वितीय स्तर की पाचन प्रक्रिया में प्रयुक्त होते हैं। यह यांत्रिक पाचन मुख से आरम्भ होकर आमाशय तक चलता है।
मुंह
इस स्थान पर भोजन चबाया जाता है, जो बाद में निगल लिया जाता है। मुंह के अन्दर बनने वाली राल (Saliva) में पाचक रस (engyme) होता है, जो स्टार्च को ग्लूकोज में बदल देता है।

ग्रासनली (esophagus)
इस स्थान से भोजन ग्रासनली में प्रवेश करता है और यहां से आमाशय में प्रवेश करता है।

आमाशय (stomach)
आमाशय की मांसपेशियां गैस्ट्रिक तरल उत्पन्न करती हैं जिसमें प्रोटीज नामक एंजाइम होता है जो प्रोटीन का अपघटन करके अमीनो एसिड उत्पन्न करता है।

छोटी आंत
छोटी आंत में एमाइलेज (amylase), प्रोटीज (protease) एवं लाइपेज (Lipase) नामक (चर्बी या वसा को विखण्डित करने वाला एंजाइम) एंजाइम बनते हैं, जो अतिरिक्त वसा, प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट को अपघटित करते हैं।

बड़ी आंत
जो भोजन पचने से रह जाता है, वह बड़ी आंत में चला जाता है। इस स्थान पर पानी से मिलकर यह बचा-खुचा पदार्थ मल में परिवर्तित हो जाता है।

मलतन्त्र
इस स्थान पर मल इकट्ठा होता है जो बाद में गुदा द्वार से बाहर निकल जाता है।
रासायनिक पाचन क्रिया :‒यह पाचन क्रिया मुंह से आरम्भ होकर आंतों तक चलती है। विभिन्न प्रकार के एंजाइम (पाचक रस) इस पाचन प्रक्रिया के दौरान बड़े अणुओं (macromolecules) का अपघटन करके उन्हें सूक्ष्म अणुओं में परिवर्तित कर देते हैं, जो शरीर द्वारा अवशोषित किये जा सकते हैं।
पाचन तन्त्र में पाचन किस प्रकार होता है? पाचन क्रिया किस स्थान पर होती है?
जैसा कि हम सभी को यह जानकारी है कि शरीर का हर अंग अलग-अलग कामों को करने के लिये बना है। इसी प्रकार पाचन क्रिया भी पाचन तन्त्र में होती है जो 20 से 30 फिट लम्बी, हमारे मुंह से गुदा द्वार तक फैली हुई नली है। आप जो कुछ भी खाते-पीते हैं, वह सब इस तन्त्र से गुज़रता है, किन्तु जब तक यह पदार्थ पाचन तन्त्र द्वारा अवशोषित नहीं कर लिये जाते, तब तक भोजन में पाये जाने वाले सभी पोषक तत्त्व शरीर के बाहर ही समझे जाते हैं। पाचन प्रक्रिया के कुछ भाग में आंत तन्त्र की दीवारों, जो कोशिकाओं द्वारा निर्मित हैं एवं आंत तन्त्र पर आवरण का कार्य करती है, द्वारा पोषक तत्त्वों को ले जाना भी शामिल है। ये पोषक तत्त्व जब एक बार आंत के अवरोध को पार करके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, उसके बाद ये पोषक तत्त्व रक्त प्रवाह में शामिल हो सकते

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